लखनऊ : चीनी मंडी
पिछले गन्ना क्रशिंग सीजन का बड़े पैमाने पर बकाया होने के कारण चीनी मिलों के सामने वित्तीय अनिश्चितता का माहोल बना हुआ है, जब तक मिलों के 100 अरब रुपये से अधिक के बकाया बोझ के मूल मुद्दे को निर्णायक रूप से सुलझाया नही जाता, तब तक 2018-2019 का गन्ना क्रशिंग सीजन लेना मिलों को नामुमकिन है। चीनी मिल असोसिएशन ने इस बारे में योगी सरकार को चिठ्ठी लिखकर चेतावनी दी हैं।
यूपी शुगर मिल्स एसोसिएशन (यूपीएसएमए) ने ‘गन्ना मूल्य निर्धारण सुधार’ और किसानों को अतिदेय भुगतान निपटाने के लिए मिलों को वित्तीय सहायता की तत्काल आवश्यकता की अपनी मांग दोहराई है। इसके अलावा, एसोसिएशन ने इस संबंध में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ बैठकों के अलावा सरकार को पिछले पत्रों को भी संदर्भित किया है।
उत्तर प्रदेश के चीनी आयुक्त ने आने वाले क्रशिंग सीजन में मिलों के लिए गन्ना क्षेत्र को आरक्षित करने के लिए बैठकों की तिथियां तय की हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश चीनी मिलर्स एसोसिएशन ने खत के जरिये बैठक में भाग लेने में असमर्थता व्यक्त की है। उत्तर प्रदेश चीनी और गन्ना कमिश्नर संजय भुसोरेड्डी ने आगामी क्रशिंग सीजन 2018-19 में चीनी मिलों के लिए गन्ना क्षेत्र को आरक्षित करने के लिए सितंबर 11 से 22 तारीख बैठकों के लिए तय की है – जिसमें सभी चीनी मिल प्रतिनिधि उनके विचार प्रस्तुत करने की उम्मीद है, लेकिन उत्तर प्रदेश चीनी मिलर्स एसोसिएशन ने बैठक में भाग लेने में असमर्थता जताई है।
‘यूपीएसएमए’ के महासचिव दीपक गुप्ता ने कहा है की, “जब मिलों के पास पहले से ही भारी बकाया राशि होती है, तो उनकी बैलेंस शीट उन्हें ताजा ऋण लेने की अनुमति नहीं देती है, क्योंकि पुनर्भुगतान फिर से उठता है, जबकि वह आने वाले मौसम में भी अतिरिक्त चीनी और कीमतों में कमी के अनुमानों के कारण मिलों को आनेवाला का बहुत आशाजनक नहीं दिख रहा है”।
गन्ने का बकाया भुगतान अहम मुद्दा
चीनी मिलर्स जिन्होंने सर्वसम्मति से बैठकों का बहिष्कार करने का फैसला किया है, उनका कहना है की, राज्य सरकार से अगले सीजन में क्रशिंग ऑपरेशन करने में सक्षम होने के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता प्रदान करने का अनुरोध कर रहे हैं। उन्होंने चीनी सीजन 2018-19 से संबंधित गतिविधियों में भाग लेने में असमर्थता व्यक्त की है । खत में मिलर्स ने 2017-18 के लिए गन्ना मूल्य बकाया को दूर करने के लिए वित्तीय सहायता के अलावा राज्य सरकार से राजस्व के आधार पर तार्किक और आर्थिक रूप से टिकाऊ गन्ना मूल्य निर्धारित करने का आग्रह किया है। यही नही २०१७-२०१८ का गन्ना भुगतान मिलों की आर्थिक क्षमता से भी काफी अधिक है।