नई दिल्ली : चीनी मंडी
घरेलू और आंतरराष्ट्रीय बाजार में कम कीमतों के कारण चीनी की खपत और निर्यात पर गहरा असर पड़ रहा है, उससे किसानों का बकाया भुगतान करना भी मुश्किल हो गया है । चीनी उद्योग को आर्थिक संकट से बाहर निकालने के लिए राहत पॅकेज का ऐलान किया और चीनी निर्यात बढ़ाने के लिए भी कुछ कदम उठाये गये थे, लेकिन फिर भी ‘राहत पॅकेज’ से उम्मीद के मुताबिक राहत नही मिल सकी, आंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कम कीमतों के चलते निर्यात बिलकुल ही ठप्प हो चुकी है । रिपोर्ट के अनुसार, सरकार अब फिर एक बार चीनी मिलों को वित्तीय सहायता प्रदान करने की उम्मीद है, जिसकी चीनी उद्योग प्रतीक्षा कर रहा हैं।
बाजार सूत्रों के अनुसार, निरंतर आपूर्ति से बाजार में बढ़ते चीनी स्टॉक ने थोक उपभोक्ताओं के साथ-साथ स्टाकिस्टों की मांग में कमी आ गयी है, जिसके कारण चीनी कीमतें कम हुई हैं। व्यापारियों के एक बड़े समूह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, इस हालत में सरकार बीमार चीनी उद्योग को बचाने के लिए क्या कदम उठा रही है, क्यों की इस पर निर्भर करता है की आगे की चीनी उद्योग की राह कैसी होगी । मौजूदा स्थिती में तो ऐसा बिलकुल ही नही लगता कि चीनी की कीमतें किसी भी परिस्थिति में बढ़ेगी और यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय चीनी की कीमतें भी कमजोर दिखती हैं। बस इतनाही ही नहीं, सरकार द्वारा चीनी अतिरिक्त एमआईईक्यू घोषित करने में देरी हो जाती है तो आनेवाले गन्ना क्रशिंग सीझन में मिलों को चीनी भंडारण करने के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है ।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में थोक बाजार में चीनी की कीमतें प्रति क्विंटल 80-100 रुपये कम हो गईं। स्टाकिस्ट और थोक उपभोक्ताओं की तरफ से मांग में कमी के चलते चीनी की कीमते फिसलती नजर आ रही हैं।