मुंबई : चीनी मंडी
एक तरफ महाराष्ट्र के कई हिस्से सूखे से झुलस रहे है, लेकिन फिर भी कृषि विभाग के रिकॉर्ड से पता चलता है कि, इस खरीफ सीजन में महाराष्ट्र में गन्ना खेती 18 साल के उच्चतम स्तर पर है। 2019-2020 क्रशिंग सीजन में गन्ना उत्पादन भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचने की उम्मीद है।
नेशनल कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के मुताबिक, ‘पूर्व मौसमी’ फसल के मामले में गन्ना के लिए महाराष्ट्र की औसत जल आवश्यकता 206.3 से.मी. है और ‘आड़साली फसल’ के मामले में 243.8 से.मी. है। गन्ना रोपण जुलाई-अगस्त में किया जाता है और फसल क्षेत्र में 18 महीने तक बना रहता है। आंकड़ों से पता चला कि, चीनी और धान, जिसके लिए अधिकतम मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, इन्ही फसलों की अधिकतम क्षेत्र में खेती की जा रही है, जो राज्य में बढ़ती जल संकट का प्रमुख कारण है।
गन्ने की खेती का क्षेत्र 2017 खरीफ सीजन में 9 .02 लाख हेक्टेर के मुकाबले 11.63 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है। पिछले साल के 831.34 लाख टन के मुकाबले 2018 में उत्पादन 927.20 लाख टन होने की उम्मीद है। कृषि विभाग के सूत्रों ने कहा कि, किसानों को अपनी फसल को ज्वार और बाजरा जैसे दालों और अनाज में बदलना होगा क्योंकि उन्हें कम पानी लगता हैं।
लेकिन किसानों को गन्ना लगाने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं। लेकिन उन्हें यह महसूस करना होगा कि, गन्ना बहुत पानी है, जो कई सालों में व्यवहार्य नहीं है। यदि हम पिछले 10 वर्षों में महाराष्ट्र बारिश चक्र देखते हैं, तो कुछ वर्षों में इसमें मामूली सूखा देखा गया है और पिछले कुछ वर्षों में गंभीर सूखा हुआ है।