कानपूर: राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर के द्वारा दिनांक 10 मई, 2021 को “ शर्करा उद्योग – जैव ऊर्जा और ऑक्सीज़न आपूर्ति की क्षमता ” जैसे एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम मे विभिन्न चीनी उत्पादक राज्यों के 200 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कार्यक्रम के दौरान चीनी कारखानों के द्वारा विद्युत ऊर्जा, ईथनोल और बायो-गैस के उत्पादन के अतिरिक्त कोविड-19 महामारी के कारण ऑक्सीज़न की बढ़ती मांग को देखते हुये चीनी कारखानों मे उपलब्ध संरचनात्मक व्यवस्था के मदद से ही “ऑक्सीज़न” उत्पादन की संभावनाओं पर प्रस्तुतियाँ दी गयी।
कार्यक्रम के आरंभ मे राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन के द्वारा चीनी कारखानों, विशेष रूप से उन चीनी कारखानो से जिनमे संयुक्त रूप से ईथनोल इकाई भी लगी हो और जो प्रेसर स्विंग अब्जोर्बप्शन (PSA) तकनीक पर काम करते हों उनसे औद्योगिक ऑक्सीज़न उत्पादन इकाइयों की स्थापना की संभावना तलाशने पर बल दिया गया। उन्होने कहा कि ईथनोल इकाइयों मे उपलब्ध मॉलिक्यूलर सीव डी-हाइड्रेशन सिस्टम को संशोधित करके हवा से नाइट्रोजन के अवशोषण मे उपयोग किया जा सकता है जिससे अपेक्षित ऑक्सीज़न को प्राप्त किया जा सके। इस विषय पर और अधिक जानकारी देते हुये प्रो. मोहन ने कहा कि जब गैस के मिश्रण जैसे हवा को, जिसमे मूलतः ऑक्सीज़न और नाइट्रोजन का मिश्रण होता है, उच्च दाब के एक ऐसे उपकरण से प्रवाहित किया जाता है जिसमे जियोलाइट की सतह अवशोषक का कार्य करती हो, यहाँ जियोलाइट की सतह पर नाइट्रोजन का अवशोषण हो जाता है क्योंकि नाइट्रोजन ऑक्सीज़न की तुलना मे जियोलाइट की सतह की ओर तीव्रता से आकर्षित होती है, फलतः जो गैस उपकरण से बाहर की ओर निकलती है उसमे ऑक्सीज़न की मात्रा अधिक होती है और उसका अधिकतम नाइट्रोजन अवशोषित हो चुका होता है। चूंकि अधिकतर चीनी कारखाने अपने यहाँ उत्पादित ऊर्जा का निर्यात करते हैं अतः उन्हे इस प्रक्रिया मे अतिरिक्त ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति मे कोई समस्या नहीं आएगी और इस प्रकार की व्यवस्था से हम93(+/-) 3% की शुद्धता वाली ऑक्सीज़न अल्प लागत पर आवश्यक उपकरणों की मदद से तैयार कर सकते हैं। अन्यथा इस प्रकार के 25 एन एम 3/ घंटा क्षमता वाले ऑक्सीज़न प्लांट की लागत लगभग 80 लाख होगी।
“ऊर्जा सुरक्षा” और “आत्मनिर्भर चीनी उद्योग” विषय पर उन्होने कहा कि अनुमानित औसततन प्रति वर्ष 280 मिलियन मीट्रिक टन के गन्ना पेराई की दर से भारतीय शर्करा उद्योग 10,000 मेगावाट ऊर्जा के अतिरिक्त 0.4 मिलियन मीट्रिक टन कम्प्रेस्ड बायो-गैस और 4500 मिलियन लीटर ईथनोल उत्पादन मे सक्षम होगी, जिससे 12% पेट्रोल मे ईथनोल के मिश्रण की दर को प्राप्त किया जा सकेगा। इस क्षमता को नवीनतम तकनीक और उपकरणों यथा बगास गैसीफिकेशन और सेलुलोज आधारित ईथनोल उत्पादन की मदद से बढ़ाया जा सकता है।
अपने प्रस्तुतीकरण के दौरान मेसर्स एस ई डी एल, मोहाली के प्रबंध निदेशक श्री विवेक वर्मा ने उनके द्वारा विकसित “मेकेनिकल वेपर री-कंप्रेशन” के बारे विस्तार से बताया उन्होने कहा कि इस तकनीक की मदद से हम पारंपरिक चीनी कारखानों मे 50% तक ऊर्जा जरूरतों को कम कर सकते हैं और इस प्रकार बचे हुये ऊर्जा को संयंत्र के किसी और स्थान पर उपयोग कर सकते हैं अथवा इसे पेराई क्षमता बढ़ाने मे भी प्रयोग मे लाया जा सकता है। मेसर्स प्राज इंडस्ट्रीज लिमिटेड, पुणे के उपाध्यक्ष श्री महेश कुलकर्णी ने ईथनोल उत्पादक इकाइयों मे ऊर्जा संरक्षण के विषय पर विभिन्न फीडस्टोक यथा; शीरा, गन्ने के जूस, अनाज और मीठी-चरी के रस आदि से ईथनोल उत्पादन के विभिन्न मॉडलों के बारे बताया।
इस वेबिनार के संयोजक प्रो. डी. स्वेन ने शर्करा उद्योग के द्वारा जैव-ऊर्जा उत्पादन विषय पर विस्तृत प्रस्तुतीकरण दिया गया तथा उन्होने चीनी उद्योग के इस क्षमता के समुचित उपयोग के बारे मे भी बताया। उन्होने चीनी उद्योग को संबोधित करते हुये कहा कि चीनी उद्योग को उत्पादन इकाइयों से सम्बद्ध आसवनियों मे ऐसी लचीली व्यवस्था का विकास करना चाहिए कि आवश्यकता अनुसार वे मॉलिक्यूलर सीव डी-हाइड्रेशन सिस्टम की मदद से सहजतापूर्वक ईथनोल अथवा ऑक्सीज़न का उत्पादन मांग के अनुरूप कर सकें।