मुंबई : चीनी मंडी
केंद्र सरकार ने चीनी के लिए न्यूनतम बिक्री मूल्य 29 रुपये प्रति किलो तय किया है, जो चीनी मिलो के हिसाब से काफी कम है। इस सीजन में सरकार ने गन्ने के लिए 2,750 रुपये प्रति टन का उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) तय किया है, जिसमें 10 फीसदी रिकवरी होती है और 10 फीसदी से ऊपर प्रति एक फीसदी की रिकवरी पर 275 रुपये अतिरिक्त जोड़े जाते हैं। लेकिन चीनी की कम क़ीमत, निर्यात में कमी के चलते चीनी मिलें नकदी के तंगी से गुजर रही है, दूसरी ओर किसान और किसान संघठन एफआरपी न मिलने से नाराज है। राजकीय गलियारों में भी गन्ने का मुद्दा तूल पकड़ रहा है, जिससे मीठी चीनी का स्वाद कडवा होता दिखाई दे रहा है ।
गन्ने के लिए भुगतान में हो रही देरी से नाराज किसानों ने 12 जनवरी को सांगली और सतारा में छह चीनी मिलों के ऑफिस जला दिए थे। उनका भुगतान करीब ढाई महीने से बकाया था, जबकि गन्ना नियंत्रण कानून के मुताबिक 14 दिन के भीतर भुगतान करना होता है। चीनी की कीमत में गिरावट से नकदी की तंगी झेल रहे मिल प्रबंधकों का कहना है कि वे आंशिक भुगतान करने को तैयार हैं, पर नाराज किसान पूरे भुगतान पर जोर दे रहे थे। चीनी मिलों ने प्रति टन 2,300 रूपये ऑफर किया, लेकिन इससे किसान नाराज हो गये।
स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के नेता और सांसद राजू शेट्टी चाहते हैं कि, केंद्र सरकार चीनी मिलों को ब्याज रहित लोन देकर बचाए। सरकार चीनी मिलों से कर वसूलती है. मिलों को संकट से उबारना उसकी जिम्मेदारी है । महाराष्ट्र में गन्ना किसानों का करीब 5,000 करोड़ रु. बकाया है. साल 2017-18 में देश में चीनी का रेकॉर्ड 3.25 करोड़ टन उत्पादन हुआ, जबकि सालाना घरेलू मांग महज 2.6 करोड़ टन थी. 2018-19 में चीनी का उत्पादन 3 करोड़ टन रहने का अनुमान है।
मिलों को प्रति क्विंटल 13.88 रु. की सब्सिडी भी मिलती है. पर निर्यात से जुड़े दस्तावेज दिखाने की बाध्यता से इसमें प्रक्रियागत देरी होती है । 2018 के अंत तक करीब 25,000 करोड़ रु. सब्सिडी बकाया थी। केंद्र सरकार ने 2018-19 के दौरान 70 लाख टन चीनी निर्यात की इजाजत दी थी, पर दिसंबर 2018 तक मिल 15 लाख टन चीनी ही निर्यात कर पाईं।
पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री और एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने देश भर की चीनी मिलों के लिए 11,000 करोड़ रुपये की मदद की मांग की है, क्योंकि मिलों से किसानों को समय पर भुगतान नहीं होने से छोटे और सीमांत किसानों में असंतोष बढ़ रहा है। उनका सुझाव है कि, चीनी का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रति किलो 34 रुपये. हो ताकि घाटे की भरपाई हो सके और गन्ना उत्पादकों को भुगतान में आसानी हो जाए।
पहले भी राहत पैकेज की मांग होती रही है, केंद्र सरकार के अधीन चीनी विकास कोष (एसडीएफ) का वित्तपोषण हर साल माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के एक हिस्से से होता है। 2013 में ऐसे ही हालात में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोष से 5,500 करोड़ रु. ब्याज रहित कर्ज प्रदान किया था। केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने मिल मालिकों को चीनी की जगह एथेनॉल उत्पादन पर जोर देने की सलाह दी है।
सोलापुर में 9 जनवरी को एक रैली में उन्होंने कहा कि, इथेनॉल आधारित ईंधन का उद्योग 50,000 करोड़ रुपये का है । हालांकि, नेशनल को-ऑपरेटिव शुगर मिल फेडरेशन के अध्यक्ष दिलीप वलसे- पाटील का कहना है कि, इथेनॉल अच्छा विचार है, पर इसको शुरू होने में कम से कम दो साल लग जाएंगे।
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