मुंबई : चीनी मंडी
केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चीनी उद्योग को लगातार वित्तीय सहायता और चालू गन्ना सीझन में पचास प्रतिशत से अधिक गन्ना पेराई के बावजूद अबी भी महाराष्ट्र में एकमुश्त एफआरपी पर कोई हल नही निकला है । इसके अलावा, चीनी की न्यूनतम बिक्री कीमत 2,900 से 3,300 रुपये प्रति क्विंटल की मांग पर भी कोई निर्णय नहीं किया गया है, इसी कारण चीनी मिलें आर्थिक नकदी से तंग है । एकमुश्त एफआरपी चुकाने में मिलों द्वारा हो रही देरी के कारण किसान और किसान संगठनों द्वारा मिलों के प्रबंधन को लक्षित किया जा रहा है।
प्रदेश में गन्ना पेराई 20 अक्टूबर से शुरू हुई थी। वर्तमान स्थिति में 584 लाख टन गन्ने का क्रशिंग हो चूका है और 10.73% के औसत से 62.72 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है। 15 जनवरी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार , राज्य में कुल एफआरपी की रकम 10 हजार 487 करोड़ है और उसमे से केवल 5,166 करोड़ रुपये किसानों के बैंक खातों में जमा किए गए हैं। 5,320 करोड़ रुपये अभी भी एफआरपी बकाया है, यानी किसानों को केवल 50 प्रतिशत तक राशि मिली है।
एफआरपी बकाया पर सुनवाई शुरू…
एफआरपी भुगतान में देरी के चलते चीनी आयुक्त शेखर गायकवाड ने पहले चरण में अब राज्य की 39 मिलों को नोटिस जारी किए हैं, और उसपर गुरुवार (24) से सुनवाई शुरू हैं। इस बीच, राशि नहीं मिलने के कारण किसानों और विभिन्न किसान संगठनों द्वारा चीनी आयुक्त कार्यालय पर आंदोलन शुरू कर दिया गया है । स्वाभाविक रूप से, अब चीनी आयुक्त शेखर गायकवाड़ की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। चूंकि एकमुश्त एफआरपी की मांग पर किसान संगठन डटी है, इसलिए चीनी आयुक्त अब चीनी मिलों की राजस्व प्राप्तियों (आरआरसी) को जब्त करने की सम्भावना जताई जा रही है।
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