कानपुर: इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ शुगर केन टेक्नोलॉजिस्ट्स द्वारा ‘डी-कार्बोनाइजेशन के लिए केन शुगर इंडस्ट्री का योगदान’ विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया था। वेबिनार में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, कोलंबिया, दक्षिण अफ्रीका, भारत और मॉरीशस के प्रतिनिधियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। भारत से आमंत्रित एकमात्र वक्ता राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के निदेशक प्रोफेसर नरेंद्र मोहन ने ‘भारतीय चीनी उद्योग में वर्तमान एथेनॉल विविधीकरण के मद्देनजर ऊर्जा प्रबंधन’ पर एक प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि, चीनी उद्योग में जीवाश्म ईंधन से प्राप्त ऊर्जा की जगह स्वच्छ, हरित और नवीकरणीय ऊर्जा प्रदान करने के लिए एक प्रमुख केंद्र बनने की सभी संभावनाएं हैं और इस प्रकार कार्बन उत्सर्जन को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
उन्होंने कहा कि, कंप्रेस्ड बायोगैस, बिजली और एथेनॉल ऊर्जा के तीन अलग-अलग रूप हैं जिन्हें चीनी उद्योग के विभिन्न उप-उत्पादों से उत्पादित किया जा सकता है और जिसकी क्षमता का दोहन करने की आवश्यकता है। प्रोफेसर मोहन ने चीनी, बिजली और एथेनॉल उत्पादन इकाइयों से युक्त एकीकृत परिसर का एक मॉडल भी प्रस्तुत किया, जो न केवल ऊर्जा के लिए अपनी जरूरतों पर आत्मनिर्भर है बल्कि बिजली का निर्यात भी करता है। उन्होंने कहा, हमें संलग्न चीनी इकाई की पेराई क्षमता को ध्यान में रखते हुए एथेनॉल इकाइयों की क्षमता तय करने के लिए सावधानी से काम करना होगा, ताकि साल भर काम करने के लिए एथेनॉल इकाई को आवश्यक फ़ीड सामग्री उपलब्ध हो सके। कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए चीनी मिलों में ऊर्जा चक्रों के प्रबंधन पर ऑस्ट्रेलिया के मरगूराइट रेनॉफ और जर्मनी के स्टीफन जाह्नके द्वारा भी प्रस्तुतियाँ दी गईं।