जानिये बांग्लादेश का चीनी उद्योग क्यों हो रहा है धराशायी

ढाका : ढाका विश्वविद्यालय में लेखा और सूचना प्रणाली विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर मुशाहिदा सुल्ताना 2015 से बांग्लादेश में चीनी मिलों पर स्टडी कर रही हैं। सुल्ताना के अनुसार, आजादी के बाद से, Bangladesh Sugar and Food Industries Corporation (BSFIC) और चीनी मिलों ने Tk6,044 करोड़ का ऋण लिया है। इन ऋणों पर Tk 3,085 करोड़ का ब्याज लगाया गया। इस समय ब्याज समेत करीब Tk 7,946 करोड़ का कर्ज चुकाना है। अगर सरकार ने चीनी मिलों को सब्सिडी दी होती, तो कर्ज का ब्याज इतनी बड़ी राशि नहीं होती, और उद्योग इतने बुरे हालात में नहीं होते। चीनी उद्योग को लेकर सरकार के पास योजना और इच्छा का अभाव है। इस स्थिति से व्यापारियों को लाभ हो रहा है, और चीनी उद्योग तबाह होने की कगार पर खड़ा है।

उन्होंने आरोप लगाया की, इन दिनों सरकार के हितों को व्यापारियों के हितों से अलग नहीं किया जा सकता है। व्यवसायी राजनेता बन गए हैं। जनहित पीछे छूट गया है। आयकर अब सार्वजनिक हित में नहीं है। इसका खामियाजा हमारी चीनी मिलों को भुगतना पड़ रहा है। इस क्षेत्र में स्थायी प्रबंधन, भ्रष्टाचार विरोधी उपायों और कुशल योजना के संबंध में हमेशा दूरदर्शिता की कमी रही है। कर्ज के बोझ से दबी मिलों की उत्पादन लागत अधिक होती है। कुछ मिलें उप-उत्पादों का उपयोग करके लागत कम कर सकती हैं, जबकि कुछ मिलें कर्ज के ब्याज से प्रभावित हैं। पहले, उत्पादन लागत में ऋण की राशि (ब्याज सहित) 6-7 प्रतिशत थी, लेकिन 2020 में छह चीनी मिलों के बंद होने के बाद, यह औसतन 37 प्रतिशत तक बढ़ गई।

उनके अनुसार, गन्ना किसानों को हर साल प्रोत्साहन राशि दी जानी चाहिए। उन्हें बीज, उर्वरक और ऋण की निरंतर आपूर्ति दी जानी चाहिए। उन्हें आश्वासन दिया जाना चाहिए कि सरकार उनकी उपज की खरीद करेगी। 2010 के दशक में, किसानों को कुछ वर्षों तक ठीक से भुगतान नहीं मिला, जिससे वे निराश हो गए। उच्च गुणवत्ता वाले गन्ने को बेहतर मूल्य मिलना चाहिए। इससे किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले गन्ने की खेती के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। चीनी मिलों की कमजोर स्थिति निजी रिफाइनरी के लिए वरदान साबित हुई है। इससे बाजार निजी लोगों के हाथों में जा रहा है। यदि निजी क्षेत्र का आपूर्ति और मांग पर नियंत्रण रहा, तो वे अपनी इच्छानुसार कीमतों में वृद्धि कर सकते हैं।

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