नई दिल्ली: पंजाब में पराली जलाने से रोकने के लिए, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) ने कहा कि, वह कम अवधि में अधिक उपज देनेवाले चावल की किस्मों के निर्माण की कोशिश कर रहा है। पंजाब और अन्य हिस्सों में किसानों द्वारा पराली जलाने से उत्तर भारत में सर्दियों के दौरान वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी है।
पीटीआई से बात करते हुए, आईएआरआई के निदेशक एके सिंह ने कहा कि, पंजाब में लंबी अवधि की धान की किस्मों के कारण फसल अवशेष प्रबंधन के लिए कम समय मिलता है, और इससे पराली जलाने की घटनाओं में बढ़ोतरी होती है। उन्होंने कहा कि, छोटी अवधि की किस्म उगाने से न केवल किसानों को पराली के प्रबंधन के लिए 25 दिन का समय मिलता है, बल्कि सिंचाई के पानी और लागत की बचत भी होती है। कम अवधि वाली धान की किस्में मध्य सितंबर या अक्टूबर के अंत में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं, जिससे गेहूं की बुवाई के लिए खेतों को तैयार करने के लिए एक महीने का समय मिलता है। जबकि धान की लंबी अवधि वाली किस्मों की कटाई अक्टूबर के अंत या नवंबर के पहले सप्ताह में की जाती है।