मक्का खेती को बढ़ावा देने के लिए संघटित प्रयासों की जरूरत

चंडीगढ़: पंजाब में 1973-74 तक खरीफ सीजन के दौरान मक्का (सौनी-मक्की) सबसे महत्वपूर्ण फसल हुआ करती थी, जब इसकी खेती 5.67 लाख हेक्टेयर में की जाती थी। इसके बाद कपास (अमेरिकी और देसी, 5.23 लाख हेक्टेयर) और धान (परमाल और बासमती, 4.99 लाख हेक्टेयर) का स्थान आता था। 1974-75 में धान और कपास दोनों ने मक्का फसल को पीछे छोड़ दिया। 2021-22 के दौरान धान का रकबा 31.45 लाख हेक्टेयर रहा। इसके विपरीत, सौनी-मक्की का रकबा घटकर 1.05 लाख हेक्टेयर हो गया, और अमेरिकी कपास का रकबा 7.01 लाख हेक्टेयर से घटकर 2.49 लाख हेक्टेयर हो गया।

मक्का खेती ज्यादातर अपर्याप्त सिंचाई सुविधाओं के साथ अपेक्षाकृत कम उपजाऊ भूमि तक सीमित हो गई है।सौनी-मक्की की उपज भी मौसम की मार के प्रति संवेदनशीलता के कारण स्थिर नहीं है। अनियमित बारिश धान के विपरीत मक्का फसल को अधिक नुकसान पहुंचाती है। 2021-22 के दौरान सरकार द्वारा खरीदी जाने वाली प्रमुख धान किस्म परमाल की राज्य की औसत उपज 67.56 क्विंटल थी। इसकी तुलना में सौनी-मक्की की उपज 37.18 क्विंटल/हेक्टेयर थी। सौनी-मक्की का एमएसपी अपेक्षाकृत कम है। सौनी-मक्की को धान की खेती के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम बनाने के लिए बहुआयामी प्रयासों की आवश्यकता है।जिसमे प्राप्त उपज में वृद्धि, सौनी-मक्की की खेती को धान की तरह लाभकारी बनाने के लिए नीतिगत समर्थन, और मांग पैदा करने के लिए मक्का के औद्योगिक उपयोग को बढ़ावा देना आदि विकल्प है।

राज्य के कृषि विभाग और पीएयू द्वारा धान की तुलना में सौनी-मक्की खेती के बारे में जागरूकता पैदा करने के प्रयास किए जा रहे हैं। इन पर तेजी लाने की जरूरत है। ये प्रयास वास्तविक उपज को बढ़ा सकते हैं और रिटर्न बढ़ा सकते है। सौनी-मक्की की खेती को लाभकारी होना चाहिए ताकि किसानों को धान के क्षेत्र को मक्का से बदलने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। उसके लिए किसानों की आय को सौनी-मक्की की खेती की ओर आकर्षित करने के लिए बढ़ाना पड़ सकता है।

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