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नई दिल्ली : चीनी मंडी
बजाज हिंदुस्तान शुगर को 1,471 करोड़ रुपयों के बकाया भुगतान को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के गन्ना आयुक्त संजय भोसरेड्डी से जवाब मांगा है कि, क्यों नहीं उनके (भोसरेड्डी) खिलाफ पहले के आदेशों का “जानबूझकर उल्लंघन और अवज्ञा” के लिए अवमानना की कार्यवाही की जाए। जस्टिस आरएफ नरीमन की अगुवाई वाली बेंच ने बजाज हिंदुस्तान द्वारा दायर अवमानना याचिका पर भूसरेड्डी से स्पष्टीकरण मांगा हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश को रखा बरकरार…
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 7 मार्च को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा था जिसमें 2004 में एक नीति के तहत चीनी क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने प्रोत्साहन को अचानक निलंबन पर “मनमाना” कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने गन्ना खरीद टैक्स के भुगतान की मांग के नोटिसों को भी रद्द कर दिया था और कहा था कि, बजाज सहित अन्य चीनी कंपनियां चीनी नीति के अनुसार प्रोत्साहन सब्सिडी, छूट और अन्य लाभ आदि की हकदार थीं।
बजाज हिंदुस्तान कंपनी ने अपने वकील सिद्धार्थ चौधरी के माध्यम से दायर अवमानना याचिका में कहा की, यूपी की अपनी सारी इकाइयाँ अपनी भागीदारी के आधार पर और 2004 की नीति के संदर्भ में अपेक्षित निवेश करके, बजाज 31 दिसंबर, 2018 तक, 1,471.21 करोड़ (मूल राशि की ओर 900.99 करोड़ और ब्याज 570.22 करोड़) प्राप्त करने का हकदार है।
बजाज हिंदुस्तान ने किया था 2,640 करोड़ का निवेश…
हालाँकि बजाज हिंदुस्तान ने 2,640 करोड़ का निवेश किया था और 2005 में चीनी नीति के आधार पर राज्य भर में आठ इकाइयाँ स्थापित की थी और सबसे बड़ा लाभार्थी था। लेकिन 2018 के फैसले में सरकार द्वारा अचानक नीति वापसी से प्रभावित हुए। शीर्ष अदालत ने यूपी सरकार के इस रुख को खारिज कर दिया था कि, 2004 की चीनी नीति के तहत लाभ को रद्द करना कानून में वैध था और 7 जुलाई, 2007 का आदेश एक नीतिगत निर्णय था और इसलिए यह उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के लिए उत्तरदायी नहीं था। इसके अलावा, राज्य सरकार ने तर्क दिया था की, सरकारी खजाने को 3,500 करोड़ के भारी वित्तीय बोझ का सामना करना पड़ रहा था, जिसने इसे “सार्वजनिक हित” में चीनी नीति को रद्द करने के लिए मजबूर किया।