काठमांडू : गन्ना किसानों के अनुसार, सरकार उनकी नकद सब्सिडी में देरी कर रही है, जबकि त्योहारी सीजन नजदीक आने के कारण उन्हें पैसों की सख्त जरूरत है। सरकार ने गन्ना उत्पादकों को 70 रुपये प्रति क्विंटल की नकद सब्सिडी देने का वादा किया है, लेकिन किसानों को पिछले सात महीनों से पैसा नहीं मिला है। गन्ने का न्यूनतम मूल्य 610 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है। यह वह न्यूनतम कीमत है, जो चीनी मिलों को किसानों को उनकी फसल के लिए भुगतान करना पड़ता है। इस राशि में से सरकार 70 रुपये का भुगतान करती है।
सरकार ने 2018 में नकद सब्सिडी योजना की घोषणा की, जब किसानों ने शिकायत की कि मिल मालिकों से उन्हें मिलने वाला पैसा उनकी लागत को कवर करने के लिए पर्याप्त नहीं है। पिछले साल इंदु शंकर चीनी मिल ने 10,678 किसानों से 2.82 मिलियन क्विंटल, महालक्ष्मी चीनी मिल ने 17,030 किसानों से 1.095 मिलियन क्विंटल और अन्नपूर्णा चीनी मिल ने 1,378 किसानों से 0.2 मिलियन क्विंटल गन्ना खरीदा था। मिलों द्वारा खरीदे गए कुल 4.17 मिलियन क्विंटल गन्ने पर सरकारी सब्सिडी 292.5 मिलियन रुपये बनती है।
पिपरिया, कविलासी ग्रामीण नगर पालिका-1 के किसान रवींद्र राय ने कहा, हम पैसे के लिए इंतजार करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते। राय को अभी तक सरकार से 56,000 रुपये नहीं मिले है।हरिओन के सुरेंद्र महतो को भी पिछले वित्तीय वर्ष में बेचे गए 1,060 क्विंटल गन्ने के लिए सरकार से 74,200 रुपये नहीं मिले है। सरकार से मिली राशि से महतो ने इस वर्ष त्योहार मनाने की योजना बनायी थी, लेकिन अब वह ऋण की तलाश में है क्योंकि ऐसा कोई संकेत नहीं है कि सरकार उसे जल्द ही भुगतान करेगी ।गन्ना किसानों के नेताओं का कहना है कि, सरकार द्वारा भुगतान में लगातार देरी ने उन्हें गन्ना बोने से हतोत्साहित किया है।कई लोगों ने तो गन्ना उगाना ही छोड़ दिया है।
फेडरेशन ऑफ शुगरकेन प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष, कपिल मुनि मैनाली ने कहा, सरकार हर साल किसानों को भुगतान करने में देरी करती रही है।परिणामस्वरूप, किसान गन्ना उगाने के इच्छुक नहीं हैं, जो इस क्षेत्र की एक प्रमुख नकदी फसल रही है।जिले में कभी किसान 26,000 हेक्टेयर में गन्ना लगाते थे, लेकिन अब रकबा घटकर एक-चौथाई रह गया है।
कृषि और पशुधन विकास मंत्रालय के अनुसार, नेपाली किसानों ने 2017-18 में 78,609 हेक्टेयर पर 3.67 मिलियन टन गन्ना उगाया।2020-21 में उत्पादन तेजी से गिरकर 3.18 मिलियन टन हो गया और रकबा घटकर 64,354 हेक्टेयर रह गया।मंत्रालय का कहना है कि, ऊंची लागत और बढ़ते बाजार जोखिम के कारण उत्पादन गिर रहा है।गन्ना किसानों का कहना है कि, मिलों से भुगतान मिलने में कठिनाइयों और सरकार से रासायनिक उर्वरक ने उन्हें नकदी फसल बोने से हतोत्साहित किया है।