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नई दिल्ली : चीनीमंडी
ऐसे समय में जब भारतीय बाजार में अतिरिक्त चीनी की बाढ़ आ गई है, ऐसे में अधिशेष से छुटकारा पाने के लिए निर्यात के अलावा कोई रास्ता नहीं है। उद्योग के जानकारों का मानना है कि, घरेलू बाजार में स्थिरता लाने के लिए 2019-20 (अक्टूबर-सितंबर) में 70-80 लाख टन चीनी निर्यात जरूरी है।
नेशनल फेडरेशन ऑफ कोआपरेटिव शुगर फैक्ट्री के मैनेजिंग निर्देशक प्रकाश नाइकनवरे ने कहा की, रिकॉर्ड ओपनिंग स्टॉक्स और अगले सीजन में 300 लाख टन से कम उत्पादन के मद्देनजर, 70 -80 लाख टन का निर्यात किया जाना चाहिए ताकि कीमतें स्थिर रहें और गन्ने के बकाया भुगतान में मदद मिल सके।
2018-19 में 330 लाख टन के रिकॉर्ड उत्पादन के कारण बाजार में 170 लाख टन से अधिक चीनी अधिशेष होने की सम्भावना है। अगले सत्र में निर्यात के मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन करने का अवसर है क्योंकि उद्योग द्वारा 2018-19 में किए गए प्रयास काम आएगा।
नाइकनवरे ने कहा, 2018-19 में दक्षिण कोरिया, चीन, बांग्लादेश और इंडोनेशिया में प्रतिनिधिमंडलों के साथ वार्ता हुई, लेकिन सरकार-से-सरकार के आधार पर प्रतिबद्धताएं और अनुबंध पहले ही हो चुके थे, इसलिए ज्यादा बढ़त हासिल नहीं की जा सकी, भारत को संपर्क करने में थोड़ी देर हो गई। 2018 की अंतिम तिमाही में, भारत ने सरकार से सरकार के आधार पर चीनी के निर्यात का पता लगाने के लिए अलग-अलग टीमों को बांग्लादेश, मलेशिया, चीन, इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया भेजा था। इंडोनेशियाई सरकार ने फरवरी में अपने भारतीय समकक्ष के साथ एक साल में 30 लाख टन कच्ची चीनी आयात करने के लिए एक समझौता किया था।
ब्राजील और थाईलैंड की तुलना में कच्ची चीनी की अच्छी गुणवत्ता भी भारतीय निर्यात को बढ़ावा देने की संभावना है। हालांकि, घरेलू कीमतों की तुलना में कम वैश्विक कीमतों के कारण सरकारी सब्सिडी के बिना निर्यात असंभव है। भारत में चीनी के उत्पादन की लागत अन्य उत्पादकों की तुलना में अधिक है जो निर्यात को अस्थिर बनाता है। चीनी उद्योग ने 2018-19 में लगभग 31 लाख टन चीनी के निर्यात के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें से 25-26 लाख टन पहले ही भेज दि गई हैं।