नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने bagasse और एथेनॉल पर दिया जोर दिया और बताया की कैसे यह मददगार साबित हो रही है। प्रधानमंत्री ने कहा कि, भारत तेजी से जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम कर रहा है और उस मिशन में गन्ने के उप-उत्पादों से काफी मदद मिली है। उन्होंने कहा कि, अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक समारोह के दौरान इस्तेमाल किए गए कप, प्लेट, कटोरे और चम्मच गन्ने के बगास (bagasse) से बनाए गए थे। पीएम मोदी ने कहा, हमारे दैनिक जीवन में ऐसी चीजों का उपयोग करने से गन्ने के उप-उत्पादों की उपयोगिता भी बढ़ गई है। भारत पोटाश की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है, लेकिन गन्ने के बगास की मदद से इसे कम करने का प्रयास किया जा रहा है।
लाइव मिंट में प्रकाशित खबर के मुताबिक, उन्होंने कहा, वर्तमान में हम अपनी पोटाश जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर हैं। हालांकि, गन्ने की बगास की मदद से उस निर्भरता को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं। गन्ने के उप-उत्पादों में से एक, प्रेस-मड का उपयोग भी किया जाता है। इसका उपयोग जैव उर्वरक के रूप में किया जा रहा है, दूसरे, प्रेस-मड सीबीजी, या संपीड़ित बायोगैस के उत्पादन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
उन्होंने एथेनॉल मिश्रण पर भी बात की और बताया कि उसने सस्टेनेबल विकास के लिए सरकार के प्रयासों को कैसे मजबूत किया। पीएम मोदी कहा, हमने पांच महीने पहले पेट्रोल में 10% तक एथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य हासिल किया था। वर्तमान में, यह लगभग 12% तक पहुंच गया है, और हम 20% तक एथेनॉल मिश्रण के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहे है।
जैव ईंधन और पर्यावरण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता पर, पीएम मोदी ने कहा कि पेट्रोल में एथेनॉल मिश्रण के कारण गन्ना किसानों को पिछले 10 वर्षों में ₹ 1 ट्रिलियन से अधिक आय प्राप्त हुई है। अगर मैंने किसी सरकारी योजना के माध्यम से किसानों को अग्रिम रूप से 1 ट्रिलियन रुपये देने की घोषणा की होती, तो यह मीडिया में सुर्खियां बनती और आपका ध्यान भी आकर्षित करती। लेकिन मेरा ध्यान सुर्खियां बनाने के बजाय गन्ना किसानों के मुद्दों के स्थायी समाधान पर है।
पीएम ने कहा कि, सरकार ने एथेनॉल डिस्टिलरीज में भी ₹40,000 करोड़ का निवेश किया, जिससे रोजगार के ढेर सारे अवसर पैदा हुए। हम तेजी से जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम कर रहे हैं, और उस मिशन में, गन्ने के उप-उत्पादों ने बहुत मदद की है। गन्ने की खोई ने बिजली के उत्पादन में वृद्धि में भी योगदान दिया है। गन्ना बगास और बायोमास सह-उत्पादन संयंत्रों की उत्पादन क्षमता देश में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।