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चेन्नई : चीनी मंडी
तमिलनाडु में चीनी उद्योग संकट से गुजर रहा है। राज्य की लगभग सभी 43 चीनी मिलें घाटे में डूबी हुई हैं। जिनमे 25 निजी मिलें भी शामिल है। वित्तीय विपत्ति के कारण निजी क्षेत्र की 8 मिलें और सार्वजनिक क्षेत्र की १ मिल इस सीजन में गन्ने की पेराई नहीं कर सकी। अगले सीजन में कई और की पेराई नही करने की संभावना है। राज्य का चीनी उत्पादन जो 2011-12 के चीनी सीजन (अक्टूबर- सितंबर) में 24 लाख टन था, 2017-18 में 7 लाख टन हो गया और इस सीजन में भी ऐसा ही रहने की संभावना है।
गन्ना उत्पादन और रिकवरी में भारी गिरावट…
मानसून ने चीनी उद्योग को बुरी तरह से निराश कर दिया है। पिछले 7 वर्षों में से 5 में नॉर्थ-ईस्ट मानसून ने तीखा खेल दिखाया। वर्षा की कमी का स्तर 2012 में 16 प्रतिशत से बढ़कर 2016 में 62 प्रतिशत तक पहुंच गया है। सूखे की स्थिति इस क्षेत्र को दो तरह से प्रभावित करती है। यह गन्ने की पैदावार को कम करता है जिससे प्रति एकड़ उत्पादन कम होता है और चीनी की रिकवरी भी कम होती है।
2011-12 में गन्ने का उत्पादन 254 लाख टन से घटकर 2017-18 में 81 लाख टन हो गया, क्योंकि प्रति एकड़ उपज 40 टन से गिरकर 25 टन हो गई। राज्य में चीनी की रिकवरी पहले 9.5 प्रतिशत थी, जबकि उत्तरी कर्नाटक, महाराष्ट्र या अब उत्तर प्रदेश में 10.5 से 11 प्रतिशत थी। बारिश की कमी ने रिकवरी दर को और कम कर दिया है। 2011-12 में 9.35 प्रतिशत की रिकवरी दर के मुकाबले 2017-18 सीजन में यह 8.64 प्रतिशत थी।
5 लाख किसानों की आजीविका हो सकती है प्रभावित…
कम पैदावार और खराब रिकवरी एक दोहरी मार है जिसे कोई चीनी मिल प्रबंधित नहीं कर सकती है। गन्ने का अभाव पेराई क्षमता के उपयोग को प्रभावित करता है। पिछले दो सत्रों में क्रशिंग क्षमता उपयोग औसतन 30 प्रतिशत से अधिक रहा। इससे चीनी उत्पादन लागत में 4 रूपये प्रति किलोग्राम की वृद्धि हुई। रिकवरी में गिरावट ने उत्पादन लागत को और बढ़ा दिया। राज्य के केवल 10 प्रतिशत गन्ने का रकबा ड्रिप-सिंचाई के तहत है। पानी के भूखे रहने वाले राज्य के लिए, यह बहुत कम है। राज्य में चीनी उद्योग अगर बंद हो जाता है, तो लगभग 1.5 लाख ग्रामीण लोग बेरोजगार हो जाएंगे और 5 लाख किसानों की आजीविका प्रभावित हो सकती है।