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नई दिल्ली: घरेलू और वैश्विक बाजार में चीनी के अतिरिक्त उत्पादन से कीमतों में लगातार गिरावट आई है, जिससे मिलों की आर्थिक हालत प्रभावित हुई है और वे गन्ने का भुगतान करने में भी विफल रहे है। वही दूसरी ओर चीनी मिलें MIEQ के 50 LMT के लक्ष्य को पूरा करने के लिए निर्यात को बढ़ाने का प्रयास कर रही है, जो की चीनी उत्पादक देशों में वर्तमान वैश्विक कीमतों और अधिशेष गन्ना उत्पादन को देखते हुए बहुत ही मुश्किल प्रतीत होता है।
कुछ समय से आर्थिक संकट से गुजर रहे चीनी उद्योग को सरकार के बहुत सारे सहायता के बावजूद राहत नहीं मिली
है। इस पुरे विषय को लेकर रणनीतियों पर चर्चा करने के लिए उद्योग के दिगज्जो के साथ खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने कल मंगलवार, ११ जून २०१९, को एक बैठक बुलाई है।
सूत्रों के अनुसार, बैठक में विभिन्न राज्यों के गन्ना आयुक्त, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के संयुक्त सचिव, राष्ट्रीय चीनी संस्थान के निदेशक, विभिन्न राज्यों के सहकारी चीनी मिलों के संघों के प्रबंध निदेशक, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ फॉरेन ट्रेड के प्रोफेसर, विभिन्न चीनी मिलों और व्यापार संघों के अध्यक्ष, देश भर के मिलों के प्रबंध निदेशक और निर्यातक इस बैठक में शामिल होंगे।
आपको बता दे हाल ही में नेशनल को-ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज़ फेडरेशन (NCSFF) के अध्यक्ष दिलीप वलसे पाटील ने उद्योग में आर्थिक संकट पर चर्चा करने के लिए पीएम कार्यालय के अधिकारियों के साथ मुलाकात की थी। अधिकारियों के साथ अपनी बैठक के दौरान, NCSFF ने मांग की थी कि मिलों को अपने वित्तीय स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए चीनी के MSP (न्यूनतम बिक्री मूल्य) को वर्तमान स्तर 31 रुपये प्रति किलो से बढ़ाया जाना चाहिए।
ऐसी अटकलें लगाई जा रही है की मंगलवार को होने वाली बड़ी चर्चा में चीनी की MSP में वृद्धि की मांग वापस से की जायेगी, और इस पर जोर दिया जाएगा की MSP में बढ़ोतरी से चीनी उद्योग को कितना फायदेमंद होगा।
भारत में चीनी मिलों का दावा है कि चीनी उत्पादन की लागत 35 से 36 रुपये है, और इसलिए वे लम्बे समय से चीनी की न्यूनतम बिक्री मूल्य को बढ़ाने की मांग कर रहे है। लोकसभा चुनाव से पहले बढ़ते गन्ने के बकाया से चिंतित सरकार ने 14 फरवरी, 2019 को चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य को 29 रुपये से 31 रुपये कर दिया था, जिससे मिलर्स को किसानों का बकाया चुकता करने में थोड़ी राहत मिली थी।