१९४१ से लेकर चीनी उद्योग सरकार कि ओर से नियंत्रित होती थे. सरकार का पूरा नियंत्रण, विनियंत्रण, अंशत: नियंत्रण, स्वनियंत्रण आदि अनेक पड़ाव पार कर चीनी उद्योग आज इस मुकाम पर पहुँचा है. चीनी के गिरते दाम और बेतहाशा बढ़ा उत्पादन से बेहाल चीनी मिले आज बकाया एफआरपि अदा करना भी मुश्किल हो गया है. लेकिन इस केलिए
सिर्फ चीन के गिरते दाम और अतिरिक्त उत्पादन जिम्मेदार नहीं है. बल्कि मेनेजमेंट में व्यावसायिकता, निर्यात योग्य उत्पादन, मार्केट रिसर्च, चीनी कि क्वालिटी बढ़ाना और उत्पादन खर्च कम करना आदि महत्वपूर्ण बातों कि और चीनी उद्योग का ध्यान न देना, आज गंभीर रूप धारण कर चुका है. इसका परिणाम आज पूरा चीनी उद्योग और किसान भुगत
रहा है.
१९४१ से १९४७ तक चीनी उद्योग पूरी तरह सरकारी नियंत्रण में था. १९४७-४८, १९६१-६२ और १९७१ इन वर्षों में चीनी उद्योग नियंत्रण मुक्त किया गया. १९६७-६८ चीनी उद्योग अंशत: नियंत्रित किया गया है. चीनी उत्पादन पर लेव्ही लागू किया गया है. इस के अनुसार चीनी मीलों में उत्पादित चीनी कुल चीनी का कुछ हिस्सा लेव्ही के माध्यम से सरकार के खाते जमा होती थी. इसकी वजह से १९९२ तक यानी ५२ वर्षो तक मार्केटिंग का कौशल्य प्राप्त नहीं क्र पाया. पहले लेव्ही से हैरान हुए चीनी मिले जब यह कानून हठाने कि मांग कर रही थी और आज चीनी मिले आपनी सारी चीनी खरीदने केलिए सरकार से गुहार लगा रही है. मुक्त अर्थ व्यवस्था के इस स्पर्धात्मक जमाने में को-ओपरेटीव चीनी मिले मेनेजमेंट व्यावसायिक कौशल्य प्राप्त कर निजी मिलों के समकक्ष प्रगति के ओर अग्रसर होना अब जरूरत बन गयी है. चीनी मिले जब तक आपने काम के तौर तरीके आज के समय केलिए योग्य होना आवश्यक है. तभी किसान खुशहाल हो सकता है.