ग्वालियर: भारत में गन्ने के साथ साथ चुकंदर से भी चीनी बनाई जा सकती है। ग्वालियर स्थित राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक चुकंदर से चीनी बनाने की प्रक्रिया पर शोध करने में जुटे हैं। यह प्रक्रिया यूरोप में आम है।शोध के लिए डेनमार्क की एक कंपनी ने चुकंदर के बीज की आपूर्ति की है। शोध में शामिल कृषि वैज्ञानिक और विश्वविद्यालय के बागवानी प्रोफेसर डॉ. आरके जायसवाल ने ईटीवी भारत को बताया कि, आमतौर पर भारत में चुकंदर का इस्तेमाल सलाद या जूस बनाने में किया जाता है। हालांकि, भारत सरकार की मदद से मध्य प्रदेश सरकार ने चुकंदर से चीनी बनाने का प्रोजेक्ट राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय को सौंप दिया है। फिलहाल चुकंदर की तीन किस्मों पर शोध किया जा रहा है। डेनमार्क से दो किस्में- हैडेला और गुस्टिया मंगवाई गई हैं। भारत में उगाए जाने वाले पारंपरिक लाल या भूरे चुकंदर की तुलना में ये किस्में सफेद रंग की हैं। तीसरी संकर किस्म जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर से मंगवाई गई है।
इन किस्मों में सुक्रोज (एक तरह की चीनी) की मात्रा पारंपरिक चुकंदर से कहीं ज्यादा है। भारत में उगाए जाने वाले चुकंदर में जहां सिर्फ 12 फीसदी सुक्रोज होता है, वहीं डेनमार्क के सफेद चुकंदर में 15 से 16 फीसदी सुक्रोज होता है।डॉ. जायसवाल ने बताया कि, भारत में पारंपरिक तौर पर गन्ने की खेती चीनी बनाने के लिए की जाती है। लेकिन गन्ने में सिर्फ 8 से 9 फीसदी चीनी होती है। अगर 100 क्विंटल गन्ने से नौ क्विंटल चीनी मिलती है, तो इतनी ही मात्रा में चुकंदर से 15 से 16 क्विंटल चीनी मिल सकती है। चूंकि चुकंदर केवल सर्दियों में उगाया जाता है, इसलिए इसके बीज बोने का सबसे उपयुक्त समय 15 से 25 नवंबर तक है। फसल की कटाई 15 मार्च तक की जा सकती है।
विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक संजय शर्मा ने कहा, परंपरागत रूप से, चीनी बनाने के लिए गन्ना उगाया जाता है और इसे बहुत अधिक पानी की आवश्यकता होती है। इसका विकल्प चुकंदर है क्योंकि इसे कम पानी की आवश्यकता होती है। वर्तमान में, चुकंदर की तीन किस्में हैं, जिनकी खोज की जा रही है और भारतीय किस्म की तुलना इसके डेनिश समकक्ष से की जा रही है। उन्होंने कहा कि, यूरोपीय देशों में 40 प्रतिशत चीनी चुकंदर से बनाई जाती है। मध्य प्रदेश में, कृषि विश्वविद्यालय के तहत तीन कॉलेजों में एक प्रयोग चल रहा है, जिसमें ग्वालियर के साथ-साथ इंदौर और मंदसौर उद्यानिकी कॉलेज में भी चुकंदर की फसल लगाई गई है। यदि प्रयोग सफल होता है, तो भविष्य में यह भारत के लिए एक किफायती फसल बन जाएगी और इससे चीनी बनाई जा सकेगी। उन्होंने कहा कि चुकंदर से बनने वाली चीनी जैविक होगी और इसे बनाने में किसी भी रसायन का उपयोग नहीं किया जाएगा।