एथेनॉल उत्पादन: पोल्ट्री फार्म मालिकों ने केंद्र सरकार से मक्का की खेती को बढ़ावा देने का आग्रह किया

नई दिल्ली : पोल्ट्री फार्म मालिकों और कार्यकर्ताओं ने केंद्र सरकार से पेट्रोल में एथेनॉल के इस्तेमाल को बढ़ाने के फैसले के बाद पूरे देश में मक्का की खेती को बढ़ावा देने का आग्रह किया है। मक्का भारत के पोल्ट्री उद्योग के लिए मुख्य चारा है, जो देश में मक्का की खपत का लगभग 60% हिस्सा है। प्रत्येक टन मक्का से 380-390 लीटर एथेनॉल बनता है। केंद्र सरकार पेट्रोल में एथेनॉल मिश्रण को 13% से बढ़ाकर 20% करने का लक्ष्य बना रही है, मक्का की बढ़ती मांग से इसकी कीमतें बढ़ने की संभावना है। यह स्थिति पोल्ट्री फार्मों, विशेष रूप से नमक्कल के छोटे फार्मों को काफी प्रभावित कर सकती है।

तमिलनाडु पशु चिकित्सा स्नातक संघ के समन्वयक और नमक्कल के पोल्ट्री पोषण विशेषज्ञ एम. बालाजी ने कहा कि, सोया और मक्का दो मुख्य सामग्री हैं, जिनका उपयोग करके मुर्गियों के लिए मुख्य चारा बनाया जाता है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में भारत में 8.85 मिलियन हेक्टेयर में मक्का की खेती की जाती है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अनाज आधारित डिस्टलरी की स्थापना और एथेनॉल की बढ़ती मांग देखी जा रही है। भारत में प्रति वर्ष 36 से 39 मिलियन टन मक्का का उत्पादन होता है, जिसमें से 13 मिलियन टन एथेनॉल उत्पादन के लिए डायवर्ट किया जाता है।

नीति आयोग और अन्य उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2025-26 में भारत में मक्का की घरेलू मांग 51.30 मिलियन टन तक पहुंचने की उम्मीद है, लेकिन उत्पादन 34.25 मिलियन टन होने का अनुमान है। इसलिए मक्का का आयात बढ़ेगा और आयात शुल्क मक्का को महंगा बना देगा।बालाजी ने कहा, भारत वर्तमान में दक्षिण अफ्रीका, म्यांमार और यूक्रेन से मक्का आयात करता है। केंद्र सरकार से मक्का की खेती बढ़ाने के लिए कदम उठाने की मांग करते हुए डॉ. बालाजी ने कहा कि, भारत में मक्का की खेती 70% मानसून पर निर्भर है। इसलिए जलवायु परिवर्तन को देखते हुए सरकार को सावधानी से काम करना चाहिए और मक्के पर आयात शुल्क में छूट देनी चाहिए।

बालाजी ने कहा, तमिलनाडु में राज्य सरकार ने 9.95 लाख हेक्टेयर में 39.09 लाख मीट्रिक टन मक्के के उत्पादन का लक्ष्य रखा है। अगर उत्पादन पर किसी तरह का असर पड़ता है या एथेनॉल उत्पादन की ओर रुख होता है तो मक्के की कीमत बढ़ती है, जिससे पोल्ट्री फार्म को नुकसान होगा और अंडे और मुर्गियों की कीमत में भारी उछाल आएगा। इसलिए सरकार को पोल्ट्री उद्योग को बचाने के लिए जल्दी से जल्दी कदम उठाने चाहिए।

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