चीनी मिल पर भूमाफिया का कब्जा

छपरा, बिहार, 11 जुलाई: एक समय था जब बिहार के सारण की गलियों से भोर सेवेरे जब गुजरते बैलों के पैरों में घुंघरू की खनक स्थानीय नागरिकों के कानों से टकराती थी तो ग्रामवासियों को पता चल जाता था कि अँधेरी रात में किसान बैलगाड़ी पर गन्ना की खेप मढ़ोरा की ओर ले जा रहे है। लेकिन वक़्त के साथ मढोरा चीनी मिल भी बंद हो गयी और घुँघरू की आवाज़ भी लुप्त हो गयी।

छपरा जिला में एक फैक्ट्री थी मढौरा चीनी मिल। ये चीनी मिल गन्नों किसानों की रीढ़ थी। “तब तक़रीबन सभी किसान इस बैल्ट में गन्ना की खेती करते थे और अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते थे। जिस चीनी फैक्ट्री के नाम से मढ़ोरा की पहचान थी उस मिल की स्थापना ब्रिटिश काल में 1904 में हुई थी। देश में शक्कर उत्पादन में इसका स्थान दूसरे नंबर पर था। वर्ष 1947-48 में ब्रिटिश इंडिया कॉरपोरेशन ने इसे अपने अधीन ले लिया। लेकिन नब्बे के दशक आते-आते अनियमित प्रबंधन नीतियों के कारण यह मिल बंद हो गयी। लखनऊ की गंगोत्री इंटरप्राइजेज नामक कंपनी के हाथों इसे 1998-99 में बेचा गया ताकि इसे नई ज़िंदगी मिल सके। बावजूद इसके मिल चालू नहीं हो सकी। बिहार राज्य वित्त निगम ने सन् 2000 में इसे बीमारू घोषित कर अपने कब्जे में ले लिया। जुलाई 2005 में उद्योगपति जवाहर जायसवाल ने इसे ख़रीदा। उन्होंने दो साल में यानी 2007 तक इसे चालू करने के प्रयास भी किया लेकिन तब से लेकर आज तक नतीजा ज्यों का त्यों बना हुआ है।

जब ये मिल चलती थी तब ज़िले भर से लोगों के लिए रोज़गार व आजीविका का बड़ा माध्यम थी । जिले की कुल जनसंख्या के 70 फ़ीसदी लोगों को यहां की मिलों से ही रोज़गार मिलता था। यहाँ की मॉर्टन, सारण और डिस्टीलरी की चार-चार फैक्ट्रियां यहाँ के लोगों की लाइफ़ लाइन के तौर पर जानी जाती थी । फ़ैक्ट्री एरिया में लोगों की चहल-पहल रौनक़ देती था। लेकिन आज यहाँ की सड़कें वीरान एवं टूटी-फूटी पड़ी हैं। जिनकी मरम्मत करने वाला कोई नहीं ।

भाजपा के एमएलसी ई सच्चिदानंद राय ने मढौरा में चीनी मिल को लेकर जनता से कहा था कि मढ़ौरा चीनी मिल चलवाने के लिए मैं सक्रिय भूमिका निभाऊंगा। विधायक के इस आश्वासन के पूरा होने का क्षेत्र की जनता को आज भी इन्तज़ार है।

आज ये चीनी मिल अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है तो दूसरी तरफ़ प्रशासन की मिलीभगत से इस मिल की जमीन पर माफ़िया क़ब्ज़ा ज़माने की फिराक में है। इस चीनी मिल की मढ़ौरा अंचल कार्यालय की जमाबंदी पंजी में करीब सात बीघे से अधिक जमीन सारण व सीवान के करीब नौ लोगों के नाम पर दर्ज करा दी गई है। जबकि मिल का आजतक इस जमीन पर कब्जा बरकरार है अचानक उस जमीन का स्वामित्व किसी दूसरे व्यक्ति के नाम से होना किसी बड़ी साजिस का हिस्सा लगता है। जबकि मिल लगान पंजी में चीनी मिल ने 2006-2007 तक अपना लगान भी जमा किया है। मढ़ौरा अंचल कार्यालय से प्राप्त सूचना के अनुसार चीनी मिल की करीब छह बीघे 18 कट्ठा जमीन तरैया के रामपुर महेश निवासी रघुनंदन सिंह के नाम से अंचल के जमाबंदी पंजी में संदेहास्पद रूप से दर्ज हो गयी है। इस घटना से एक ओर जहाँ स्थानीय चीनी मिल वर्करों में रोष व्याप्त है वहीं इस मिल में काम कर अपना पेट पालने की उम्मीद में बैठे कामगारों में भारी आक्रोश भी है।

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