राष्ट्रीय जैव ऊर्जा मिशन में चीनी मिलों के कोजनरेशन परियोजनाओं की बहुमूल्य भूमिका: पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार, ‘कोजनरेशन एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ द्वारा पुरस्कार वितरण

पुणे: पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा की, चीनी मिलों की कोजनरेशन परियोजनाएं राष्ट्रीय जैव ऊर्जा मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। किसानों की आय बढ़ाने के लिए इन परियोजनाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। हालांकि, पवार ने आलोचना की कि ऊर्जा नियामक एजेंसियां अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर बिजली क्षेत्र में बाधाएं पैदा कर रही हैं। शनिवार (19) को पुणे में ‘कोजनरेशन एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ द्वारा आयोजित एक समारोह में देश की विभिन्न चीनी मिलों को ‘राष्ट्रीय कोजनरेशन पुरस्कार 2024’ प्रदान किया गया। इस समय पवार बोल रहे थे।

मंच पर प्रदेश के सहकारिता मंत्री बाबासाहेब पाटिल, कोजनरेशन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष जयप्रकाश दांडेगावकर, राष्ट्रीय सहकारी चीनी मिल संघ के अध्यक्ष हर्षवर्धन पाटिल और प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे, ‘विस्मा’ के अध्यक्ष बी.बी.ठोंबरे, महाराष्ट्र सहकारी चीनी कारखाना संघ के अध्यक्ष पी.आर. पाटिल और प्रबंध निदेशक संजय खताळ, ‘वीएसआई’ के महानिदेशक संभाजी कडू-पाटील, ‘सकाळ मीडिया समूह’ के अध्यक्ष प्रतापराव पवार, बारामती के ‘कृषि विकास ट्रस्ट’ के राजेंद्र पवार, केंद्रीय अपारंपरिक ऊर्जा मंत्रालय के सौर विभाग के संयुक्त सचिव दिनेश जगदाले, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की सलाहकार वैज्ञानिक संगीता कस्तूरे आदि उपस्थित थे।

पवार ने कहा, केंद्र और राज्य ऊर्जा नियामक आयोगों के बीच कोई समन्वय नहीं है। वे सामाजिक और आर्थिक परिणामों को नहीं समझते। इसलिए केंद्र को ग्रामीण भारत के हितों में हस्तक्षेप करना चाहिए। राज्य का ऊर्जा नियामक आयोग अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल कर रहा है। इससे अनावश्यक नीतियों को बढ़ावा मिल रहा है, जैसे किसानों से बिजली बिल वसूलने की मांग करना, क्रॉस सब्सिडी देना, कैप्टिव उपयोग पर अधिभार लगाना तथा बिजली शुल्क निविदा पर अनुचित सीमाएं लगाना।उन्होंने मेरे लिए यह भी दुःख की बात है कि राष्ट्रीय जैव मिशन के पास चीनी मिलों की बायोगैस आधारित कोजनरेशन परियोजनाओं के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है। इसके विपरीत, ये परियोजनाएं ग्रामीण विद्युतीकरण में बड़ी सफल साबित हुई हैं, जिससे स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता 9.7 गीगावाट तक पहुंच गयी है। इस क्षेत्र में 28 गीगावाट की क्षमता है और यदि इसे प्रोत्साहित किया जाए तो यह कृषि विकास में योगदान दे सकता है। लेकिन दूसरी ओर, ऊर्जा क्षेत्र में नियामक एजेंसियों के बीच समन्वय का अभाव है।

पवार ने जैव ऊर्जा उत्पादन में बायोगैस और बायोमास के बीच अंतर पर भी प्रकाश डाला। ‘मूलतः, यह स्वीकार करने का समय आ गया है कि बायोगैस का उत्पादन भी कृषि बायोमास से होता है। चीनी मिलें बायोमास आधारित ऊर्जा परियोजनाएं चलाकर ऑफ-सीजन के दौरान भी अपनी क्षमता का उपयोग कर रही हैं। पवार ने कहा कि, इसलिए केंद्र सरकार को बायोगैस और जैव-घटकों के बीच भेद करना बंद कर देना चाहिए।

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