नई दिल्ली: चीनी मंडी
हालही में, अंतर्राष्ट्रीय चीनी संगठन (ISO) ने 02 सितम्बर को अपने रिपोर्ट में भारत और थाईलैंड में कम उत्पादन के कारण वैश्विक बाजार में 4.76 मिलियन टन चीनी की कमी का अनुमान जताया था। जिसका सीधा असर कीमतों में देखा जाने की संभावना बनी हुई है। अगर वैश्विक बाजार में चीनी कीमतें बढ़ती है, तो निर्यात भी बढ़ेगी और राजस्व की समस्या से परेशान मिलों को भी राहत मिलने की संभावना बनी हुई है। नवंबर मध्य के बाद भारत से चीनी के निर्यात सौदों में भी सुधार आने का अनुमान है। पिछले कुछ महीनों से वैश्विक बाजार में चीनी कीमतों में दबाव देखा जा रहा है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अबिनाश वर्मा ने एक इंटरव्यू में कहा है की वैश्विक बाजार में अब चीनी के दाम 20 रुपये प्रति किलो मिल रहे हैं। इसमें 10.50 रुपये प्रति किलो की सब्सिडी को मिलाकर भाव 30.50 रुपये प्रति किलो होता है। केंद्र सरकार ने चीनी का न्यूनतम बिक्री भाव 31 रुपये प्रति किलो तय किया है। मिलों की लागत इससे ज्यादा है। चीनी मिलें केवल अधिशेष को कम करने के लिए थोड़ा बहुत निर्यात कर रही हैं। चालू पेराई सीजन में अगस्त के मध्य तक 37 से 38 लाख टन चीनी का ही निर्यात हुआ है। अक्टूबर 2019 से चीनी का नया पेराई सीजन 2019-20 शुरू होगा। अक्टूबर के अंत तक ब्राजील का उत्पादन लगभग बंद हो जाएगा। उस समय विश्व बाजार में चीनी की उपलब्धता 40 से 50 लाख टन कम होने का अनुमान है। जिससे वैश्विक बाजार में चीनी की कीमतों में सुधार आ सकता है, और जिससे निर्यात भी बढ़ने की संभावना है।
सूखा और बाढ़ से गन्ना फसल को क्षति : बुआई में भी गिरावट…
महाराष्ट्र और कर्नाटक में पहले सूखा और बाद में बाढ़ से गन्ने की फसल को नुकसान हुआ है। इस कारण पहली अक्टूबर 2019 से शुरू होने वाले नए पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन घटकर 282 लाख टन रहने का अनुमान है। यह चालू पेराई सीजन के 330 लाख टन से 48 लाख टन कम है।
केंद्र सरकार ने 28 अगस्त को 6,268 करोड़ रुपये की चीनी निर्यात सब्सिडी योजना की घोषणा की, जिससे देश को 60 लाख टन चीनी निर्यात हासिल करने में मदद मिलने की उम्मीद है। देश चीनी अधिशेष से जूझ रहा है और इसलिए सरकार का मकसद चीनी निर्यात को बढ़ावा देना है। कैबिनेट ने चीनी सीजन 2019-20 के लिए चीनी मिलों को निर्यात करने के लिए 10,448 रुपए प्रति टन के हिसाब से सब्सिडी देने को मंजूरी दी है। चीनी निर्यात का पैसा कंपनी के खाते में नहीं बल्कि किसानों के खाते में जाएगा, और बाद में शेष राशि, यदि कोई हो, मिल के खाते में जमा की जाएगी।
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