गुजरात के डांग जिले के डेढ़ लाख गन्ना मजदूरों ने अपनी मजदूरी बढ़ाने की मांग की

अहमदाबाद: गन्ने की कटाई जल्द शुरु होने वाली है। दक्षिण गुजरात में डांग जिले के लगभग 1.5 लाख मजदूर बेहतर दैनिक मजदूरी के लिए आंदोलन कर रहे हैं। इन किसानों को फिलहाल लगभग 119 रुपये प्रति दिन मजदूरी मिलती है। ये आदिवासी मजदूर हैं जो सूरत और नवसारी जिलों में गन्ना कटाई का काम करते हैं।

बारदोली शुगर फैक्टरी में काम कर रहे अरविंद चौधरी ने कहा कि गत बुधवार को डांग जिला के कलेक्टर के साथ 150 से अधिक आंदोलनकारी मजदूरों ने मीटिंग की। लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला। कलेक्टर ने मजदूरों को आंदोलन न करने की धमकी दी। डांग जिले के सुबीर तालुका के अपने तीन सहयोगियों के साथ शहर के मजूर अधिकार मंच कार्यालय में आए श्री चौधरी ने कहा कि कलेक्टर ने हमें अपना आंदोलन तुरंत समाप्त करने की चेतावनी है।

श्री चौधरी ने कहा कि गन्ना मजदूरों को इस समय जो मजदूरी मिल रही है, उसे छह साल पहले तय किया गया था। हमें हर टन गन्ने की फसल के लिए 238 रुपये मिलते हैं जबकि इसकी एक टन फसल के लिए हमें हर दिन 12-14 घंटे काम करने वाले दो मजदूरों की आवश्यकता होती है। इसलिए प्रति व्यक्ति हमें हर दिन सिर्फ 119 रुपये मिलते हैं।

मजूर अधिकार मंच के कार्यकारी समिति के सदस्य रमेश श्रीवास्तव ने कहा कि’ ये मजदूर खेतिहर मजदूरों में नहीं आते। खेतिहर मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी 178 रुपये प्रतिदिन मिलती है। वे कारखाने अधिनियम के तहत भी नहीं आते हैं, जहां अकुशल श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी 276 रुपये प्रति दिन है। गन्ने की कटाई करने वालों को 238 रुपये प्रति टन के हिसाब से कम मजदूरी मिलती है। यह छह साल पहले तय किया गया था। इस बारे में जिला और राज्य श्रम विभाग तक पहल की गई है लेकिन इसकी कोई सुनवाई नहीं हो रही।

मजदूरों की ओर से एनजीओ ने सुगर फैक्ट्रीज़ के प्रबंधन और गुजरात स्टेट फ़ेडरेशन ऑफ़ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज़ को भी पत्र लिखा है जिसके अध्यक्ष गुजरात के खेल, युवा और सांस्कृतिक गतिविधियों के मंत्री ईश्वरसिंह पटेल हैं।
श्रीवास्तव ने कहा कि दक्षिण गुजरात की सहकारी चीनी फैक्ट्रियां वलसाड, नवसारी, तापी, भरूच, नर्मदा और सूरत जिलों में फैली फसल को काटने के लिए कोयटास परिवारों का इस्तेमाल करती हैं। कोयटा परिवारों को इन जिलों के गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में गांवों के बाहरी इलाकों में वाणिज्यिक वाहनों में पड़ाव (बस्तियों की तरह स्क्वैटर) में ले जाया जाता है। फसल की कटाई के समय जो दशहरा के बाद शुरू होता है, इन परिवारों को प्रति माह 30 रुपये का अग्रिम भुगतान किया जाता है और 30 किलोग्राम ज्वार का मासिक भत्ता दिया जाता है। इस संबंध में मजुर अधिकार मंच के प्रतिनिधि शुक्रवार को श्रम विभाग के अधिकारियों से मिलेंगे।

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