चेन्नई: चीनी की उत्पादन लागत ज्यादा और चीनी की बिक्री दर में कमी के कारण तमिलनाडु की कई सारी चीनी मिलें करोड़ों का घाटा उठा रही है, जिससे मिलें बैंकों के कर्ज के तले दबी हुई है। कर्ज और उसके बढ़ते ब्याज से बेहाल तमिलनाडु की कुछ चीनी मिलों की मदद के लिए बैंक रास्ते तलाश रहे हैं। खराब मॉनसून और चीनी की कम कीमतों के कारण मिलों के मुनाफे को घाटे में बदल दिया है। बढ़ते कर्ज के कारण राज्य की पांच चीनी मिलें तो बैंकों के लिए नॉन-परफॉर्मिंग एसेट बन गई हैं। इन मिलों ने अब बैंकों से कर्ज चुकाने की अवधि बढ़ाने की मांग की है। तमिलनाडु में गन्ने से चीनी की रिकवरी कम रहती है। चीनी मिलों के मुताबिक, उत्पादन क्षमता का पूरा इस्तेमाल नहीं होने की वजह से यहां चीनी की प्रॉडक्शन कॉस्ट ऊपर है। बढ़ती प्रॉडक्शन कॉस्ट मिलों को गहरे आर्थिक संकट की तरफ धकेल रही है।
तमिलनाडु के ग्रामीण अर्थव्यवस्था में चीनी मिलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं, लेकिन अब मिलें संकट में फंसने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी डगमगाई है। चीनी मिलों के सामने लोन चुकाने के संकट से किसान भी चिंतित हैं। हालांकि, चीनी मिलों के लिए आने वाले समय में स्थिति सुधर सकती है। केंद्र सरकार एथेनॉल पर जोर दे रही है और देश में चीनी का उत्पादन कम होने और निर्यात की संभावना बढ़ने से मिलों का मुनाफा बढ़ सकता है। चीनी मिलों को आर्थिक संकट से बाहर निकालने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को भी ठोस कदम उठाने की मांग की जा रही है।
आपको बता दे, हालही में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आश्वासन दिया था की वे राज्य के चीनी उद्योग को संकट से बाहर निकालने में मदद करेंगी। सीतारमण, जो ‘मोदी सरकार के 100 दिनों में उपलब्धियां’ को समझाने के लिए चेन्नई में थीं, ने तमिलनाडु में चीनी उद्योग के प्रतिनिधियों को उनकी मुसीबतों पर काबू पाने में मदद करने का आश्वासन दिया है। अब राज्य का चीनी उद्योग मदद के लिए सरकार पे नजरे टिकाए हुए है।
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