गन्ने की फसल में ‘’पर ड्रोप मोर क्रॉप’ तकनीक अपनाने की है ज़रूरत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नई दिल्ली, 25 दिसम्बर: देश में घटते भूल जल स्तर पर चिन्ता व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों से जल संरक्षण पर ध्यान देने की अपील की है। राजधानी दिल्ली में अटल भूजल योजना की शुरुआत के मौक़े पर प्रधानमंत्री ने कहा कि किसानों को जल संरक्षण तकनीकों को अपनाने की ज़रूरत है। ‘जल है तो कल है’ की थीम पर ज़ोर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें कम पानी चाहने वाली फसलों और नई सिंचाई पद्धतियो को अपनाने की ज़रूरत है।

धान और गन्ना जैसी फसलों में पानी की ज़रूरत ज़्यादा होती है। इसलिये इन फसलों की खेती के लिए टपक सिंचाई और फ़व्वारा सिंचाई पद्धति अपनाने की ज़रूरत है। किसान गन्ने की खेती में पूरे खेत को पानी से लबालब भर देते हैं जबकि ज़रूरत है पौधे को पानी देने की। इस वजह से पानी की अनावश्यक बर्बादी हो रही है। गन्ने की फसल में 70 फ़ीसदी पानी अनावश्यक लगता है जबकि केवल 30 फ़ीसदी पानी से ही काम हो सकता है। किसानों को इसके लिये जागरुक करने की ज़रूरत है। ताकि जल संरक्षण भी हो सके और गन्ने की फसल का उत्पादन भी अच्छा हो। प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में जहां जहां पर गन्ने की खेती हो रही है वहाँ आज से 20 साल पहले ज़मीन से 5-7 फ़ीट गहराई पर जल स्तर था आज वहाँ 300 फ़ीट से भी गहरा पानी का लेवल चला गया है। कई जगह पानी का स्तर इतना नीचे चला गया कि खेती भी नहीं हो पा रही है।

प्रधानमंत्री ने देश के किसानों का आह्वान करते हुए कहा कि अगर आप आज नहीं जागे तो आने वाले दिनों में पानी के संकट से सबको जूझना पड़ेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि इज़रायल जैसे देशों से हमें जल संरक्षण की तकनीकें सीखने की ज़रूरत है।

हमारे कृषि वैज्ञानिकों को चाहिए कि वो धान और गन्ने जैसी अधिक पानी लेने वाली फसलों में ’’पर ड्रोप मोर क्रॉप’’ तकनीक को किसानों के खेत तक पहचाने की ज़रूरत है, जिससे घटते जल स्तर को सहेजने की दिशा में पहल की जा सके। प्रधानमंत्री ने कहा कि अटल जल योजना की शुरुआत राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में शुरु की गयी है। इस योजना से 78 ज़िलों के 8350 गाँवों में भूल संरक्षण में मदद मिलेगी। जलशक्ति मंत्रालय योजना की मॉनिटरिंग करेगा और धान और गन्ना जैसी फसलों में वर्षा जल को संरक्षित कर ड्रिप और स्प्रिंकलर पद्धतियों के माध्यम से कम जल में भी अधिक उत्पादन ले सकेंगे ।

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