नई दिल्ली : चीनी मंडी
2017-1018 देश में चीनी का बम्पर उत्पादन हुआ, लेकीन घरेलू और विदेशी बाजारों मे चीनी किंमतों में लगातार गिरावट आने की वजह से मिलें गन्ना किसानों का तकरीबन 17 हजार करोड से जादा रूपयों का भुगतान नही कर सकी, इसके चलते सरकार ने मिलर्स को चीनी निर्यात से पैसा उपलब्ध हो इसलिए 2017-18 के लिए एमआईईक्यू योजना के तहत 2 मिलियन टन चीनी निर्यात की अनुमति दी। लेकीन यह योजना भी चीनी मिलों के लिए कारगर साबीत नही हो सकी। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, अब तक केवल 5 लाख टन चीनी निर्यात की जा चुकी है। यह देखते हुए सरकार ने आज फिर चीनी निर्यात का कार्यकाल 3 महिनों के लिए बढा दिया है ।
वैश्विक बाजार में मांग होते हुए भी देश मे कच्चे चीनी की अनुपलब्धता के कारण शिपमेंट कम हो गया है। चीनी उद्योग ने एक प्रतिनिधी के मुताबिक, निर्यात के लिए कच्ची चीनी नहीं होने की वजह से मंत्रालय से समय सीमा बढ़ाने पर विचार करने का अनुरोध किया गया था, ताकि 2018-19 गन्ना फसल से ताजा कच्ची चीनी का उत्पादन करके निर्यात किया जा सके।
आज सरकार ने अनुमानित गन्ना के प्रति टन 7.14 किलोग्राम चीनी से एमआईईक्यू के तहत निर्यात कोटा संशोधित किया, वर्तमान चीनी सीजन 2017-18 के दौरान वास्तविक गन्ना के प्रति मीट्रिक टन प्रति टन 7.14 किलोग्राम चीनी या मौजूदा कोटा पहले से ही 09/05/2018 एमआईईक्यू के तहत जो भी कम है। सरकार ने तीन महीने तक आवंटित चीनी मिलों को एमआईईक्यू के निर्यात की तारीख भी बढ़ा दी है और चीनी मिलों के पास 2017-18 सीजन या 2018-19 सीजन की चीनी निर्यात करने का विकल्प शामील है।
आर्थीक हालात से जुज रहे चीनी उद्योग को सवांरने के लिए मिलों के पास वित्तीय तरलता की उपलब्धि बनाने के लिए, 2017-18 चीनी मौसम के लिए सरकार द्वारा 09/05/2018 के आदेश जरीए चीनी मिलों को न्यूनतम इंडिकेटिव एक्सपोर्ट कोटा (एमआईईक्यू) आवंटित किया गया था।
इसके साथ ही सरकार ने आर्थीक तंगी से निपटने के लिए चीनी मिलों के साथ-साथ गन्ना किसानों को राहत देने के लिए कई कदम उठाए हैं। सितंबर को समाप्त होने वाले 2017-18 सत्र में रिकॉर्ड चीनी उत्पादन ने घरेलू बाजार में गिरी चीनी कीमतों की वजह से चीनी मिलें किसानों का भुगतान करनें मे असफल रही, इससे मई 2018 के अंत तक 23,232 करोड़ रुपये को छुआ था। सरकार ने चीनी आयात पर शुल्क को 100 प्रतिशत तक दोगुना कर दिया और उसके बाद निर्यात शुल्क कम कर दिया। भले ही वैश्विक कीमतें कम हों लेकीन सरकार ने मिलों के लिए दो मिलियन टन चीनी निर्यात अनिवार्य बना दिया । सरकार को उद्योग के लिए 8,500 करोड़ रुपये का पैकेज और बफर स्टॉक बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
सरकार के पैकेज में इथेनॉल क्षमता बढाने के लिए मिलों को 4,440 करोड़ रुपये का सॉफ्ट लोन शामिल था। केंद्र ने गन्ना क्रशींग के लिए 5.50 रुपये प्रति क्विंटल की सहायता की भी घोषणा की थी, जिसके लिए 1,540 करोड़ का आवंटन किया गया। चीनी के बफर स्टॉक के निर्माण के लिए 1,200 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। अनुमान है कि देश के चीनी उत्पादन ने 2017-18 सीजन में पिछले वर्ष की तुलना में 20.3 मेट्रिक टन के मुकाबले 32 मेट्रिक टन रिकॉर्ड को छुआ है। जबकी घरेलू बाजार में चीनी की मांग लगभग 25 मेट्रिक टन है।