सरकार का चीनी निर्यात समय सीमा बढ़ाना उचित कदम : संजय खताल

मुंबई : चीनी मंडी

महाराष्ट्र राज्य सहकारी चीनी कारखाना संघ (एमआईएस) के एमडी संजय खताल ने चीनी मंडी से खास बात करते हुए भारतीय चीनी उद्योग में वर्तमान परिदृश्य में निर्यात निति, गन्ना बकाया, क्रशिंग सिझन की तैयारी, चीनी उद्योग की मुश्किलें और उसका हल इसके बारे में अपने विचार साझा किए है। उसके कुछ अंश…

सरकार ने हाल ही में एमआईईक्यू के लिए समय सीमा बढ़ा दी है, इससे क्या महाराष्ट्र की मिलें चीनी निर्यात करने में सक्षम होंगी?
संजय खताल : सरकार ने 30 सितंबर 2018 से 31 दिसंबर 2018 तक 3 महीने तक एमआईईक्यू की समय सीमा बढ़ा दी है। इससे 2017-18 और 2018-19 इन दो सालों के गन्ना सीझन में उत्पादित होनेवाली चीनी की निर्यात की जा सकेगी। सरकार की समय सीमा बढ़ाने की पहल एक स्वागत कदम है और निश्चित रूप से मिलों की निर्यात को सुविधाजनक बनाएगा। चीनी निर्यात को लेकर चीनी मिलों को पहले कुछ परेशानी का सामना करना पड़ रहा था, लेकिन अब सरकार द्वारा समय सीमा बढ़ाकर मिलों की परेशानी को उचित रूप से हल किया गया है। सरकार ने मुख्य रूप से, सहकारी बैंकों में “नो लीन” खातों को खोलने के लिए अनुमति जैसे मुद्दे का ख्याल रखा गया है, जो लगभग 90 चीनी मिलों के लिए एक समस्या थी, जिनके पास केवल सहकारी बैंकों के परिचालन खाते हैं।

चीनी की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत $ 340 से $ 350 के बीच रही थी।इससे निर्यात से होनेवाली आय और बैंकों द्वारा किए गए चीनी के मूल्यांकन के बीच बड़ा अंतर आ रहा था, इसके बावजूद, चीनी मिलों ने अन्य वैकल्पिक स्रोतों से वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने और संभव सीमा तक निर्यात को पूरा करने की पूरी कोशिश की। महाराष्ट्र में 31 जुलाई 2018 तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2.26 लाख टन निर्यात कोटा के मुकाबले अब तक 1.58 लाख टन चीनी की निर्यात की है। अधिकांश मिलें चीनी कीमत और स्टॉक वैल्यूएशन असमानता से शोर्ट मार्जिन का सामना करना पड रहा है, फिर भी महाराष्ट्र मिलर्स ने किसानों के एफआरपी बकाया राशि को ढंग से सुलझा लिया है। लगभग 200 करोड़ रुपये तक बकाया राशि 500 करोड़ रुपये तक कम हो गई है।

चीनी निर्यात में समय सीमा में विस्तार और २०१८-२०१९ के चीनी मौसम दोनों का निर्यात के लिए विचार करने से महाराष्ट्र की चीनी मिलें नवंबर और दिसंबर 2018 के महीनों में कच्चे चीनी का उत्पादन कर निर्यात करने और एमआईईक्यू को पूरा करने की स्थिति में होंगे। आईएसईसी समेत विभिन्न निर्यातकों द्वारा अनुबंध को अंतिम रूप देने के लिए कड़े प्रयास जारी हैं। हालांकि, यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि, चीनी के आंतरराष्ट्रीय कीमतों में और गिरावट आई है और पक्की चीनी की कीमतें 305 डॉलर से 317 डॉलर के बीच और कच्ची चीनी 220 डॉलर से 227 डॉलर के बीच हैं। नतीजतन चीनी मिलों का फायदा घट सकता है. जो चीनी मिलों के लिए चिंता का विषय है। इससे निपटने के लिए प्रयास अभी से प्रयास जारी हैं।

किसानों का करोड़ा का बकाया, मौजूदा सीजन में चीनी और गन्ने का अनुमानित रिकॉर्ड उत्पादन, साथ ही गन्ने के रस, और बी-गुड़ से सीधे इथेनॉल के बनाने का फैसला इसके चलते 2018-19 में मिलों को क्या उपाय करना होगा?
संजय खताल : प्रदेश की चीनी मिलें 2018-19 का गन्ना क्रशिंग सीजन के लिए पूरी तरह से तैयार है । कटाई और परिवहन के लिए मजदूर से श्रम अनुबंध शुरू हैं और इसके साथ ही बड़ी संख्या में गन्ना की कटाई मशीनों को तैनात किया जा रहा है, जिसके लिए सरकार ने हाल ही में व्यक्तिगत लाभार्थियों के लिए सब्सिडी सहायता की अनुमति दी है। 2017-18 के चीनी सीजन में पहले से चल रही 297 मशीनों के अलावा २०१८-२०१९ में लगभग 200 अतिरिक्त मशीनों को तैनात किया जा सकता है। इस साल गन्ना फसल की स्थिति संतोषजनक है। पिछले साल की तरह इस साल भी गन्ने के अतिरिक्त क्षेत्र से गन्ना कटाई चुनौती के चलते सरकार से अनुरोध किया गया है कि क्रशिंग सीजन 1 अक्टूबर 2018 से शुरू होने की अनुमति दे, जिससे समय पर प्रदेश में गन्ना कटाई हो सके।

भारत सरकार ने चीनी उद्योग के अनुकूल इथेनॉल नीति की भी घोषणा की है और सौभाग्य से तेल कंपनियों ने इथेनॉल की खरीद के लिए समय पर विज्ञापन सुनिश्चित किया है। निविदाएं जारी की गई हैं और 31 अगस्त 2018 को जमा करने की आखिरी तारीख को 17 सितंबर 2018 तक बढ़ा दिया है। सरकार ने पहले से ही “बी” ग्रेड मोलासीस इथनॉल के लिए 80:20 का अनुपात तय कर लिया है। अखिल भारतीय स्तर पर इथेनॉल की मात्रा में भी 313 करोड़ लीटर से 329 करोड़ लीटर तक वृद्धि हुई है। लेकिन महाराष्ट्र के मामले में इसे 43.58 करोड़ लीटर से घटाकर 41.65 कर दिया गया है, महाराष्ट्र का कोटा बढ़ाने के लिए तेल कंपनियों गुजारिश की जाएगी ।

अगले सीजन के उत्पादन पर आपकी राय क्या है?
संजय खताल : 2018-19 क्रशिंग सीझन में चीनी का संभाव्य रिकॉर्ड उत्पादन चीनी उद्योग के सामने एक चुनौती थी, लेकिन चीनी की न्यूनतम बिक्री कीमत, निर्यात कोटा और इथेनॉल नीति से चीनी उद्योग को अच्छे दिन आ सकते है।। हालांकि, चीनी के भंडारण के लिए गोदाम सुविधाएं एक बड़ी चुनौती मिलों के सामने अबभी मौजूद हैं, जिसके लिए उचित कदम उठाने चाहिए।

वैश्विक स्तर पर चीनी की खपत कम हो रही है, क्या इससे भारत भी प्रभावित होगा और क्या यह मुद्दा देश के चीनी उद्योग को प्रभावित करेगा?
संजय खताल : चीनी की विश्वभर में खपत कम होना चीनी उद्योग के लिए नकारात्मक बात समझी जा सकती है। लेकिन भारत स्वयंम ही चीनी का एक प्रमुख उपभोक्ता है और इसलिए चीनी की मांग कम होने की बात भारतीय संदर्भ में वास्तविकता से परे है। वैश्विक स्तर पर कृत्रिम स्वीटर्स का उपयोग स्वास्थ्य खतरे के रूप में देखा जाता है और इसके चलते शीत पेय निर्माता कृत्रिम स्वीटर्स का विकल्प छोड़कर फिर से गन्ना और बिट से बनी चीनी का इस्तेमाल कर रहे है, और यह चीनी उद्योग के लिए अच्छी बात है ।

मानसून ने कुछ क्षेत्रों में गन्ना फसल को नुकसान पहुंचाया है, क्या इससे महाराष्ट्र में भी उत्पादन प्रभावित होगा?
संजय खताल : मानसून से गन्ना फसल को इतनी क्षति नही पहुंची, जिससे उत्पादन प्रभावित हो सके, और जहां भी फसल प्रभावित होने की सम्भावना बनी है, वहाँ उसका बहुत कम समय के लिए प्रभाव दिखेगा, जादा परेशानी का बात नही है ।

SOURCEChiniMandi

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