नई दिल्ली : चीनी मंडी
भारत 2018-2019 में चीनी उत्पादन में करेगा नया कीर्तिमान स्थापित करने का अनुमान जताया जा रहा है, चीनी का दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता भारत अब चीनी उत्पादन में अभी दुनिया के नम्बर वन देश ब्राजील से भी आगे निकलकर सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश बनने की कगार पर खड़ा है। इसमें उत्तर प्रदेश 13-13.5 लाख मेट्रिक टन, महाराष्ट्र 11-11.5 लाख मेट्रिक टन, कर्नाटक 4.5 लाख मेट्रिक टन, गुजरात 1.2 लाख मेट्रिक टन, तमिलनाडू 0.9 लाख मेट्रिक टन, अन्य 4.2 लाख मेट्रिक टन यानी कुल मिलाकर पुरे देश में चीनी का तक़रीबन 35-35.5 लाख मेट्रिक टन रिकॉर्ड उत्पादन होने का अनुमान जताया जा रहा है इस वित्त वर्ष में भारत में कुल चीनी उत्पादन में उत्तर प्रदेश का हिस्सा 38 प्रतिशत था और यह पहले कभी नहीं हुआ था।
ब्राजील के आगे कैसे?
भारत का चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक के रूप में उभरने का प्रमुख कारण है की ब्राजील ने गन्ने से चीनी उत्पादन की बजाय इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा दिया है। दूसरी तरफ,’ नम्बर वन’ का ताज पहनने जा रहा भारत अपने मौजूदा चीनी स्टॉक का प्रबंधन करने के लिए संघर्ष कर रहा है, जबकि इस साल फिर चीनी का रिकॉर्ड उत्पादन होने की सम्भावना बनी हुई है। ब्राजील में 2018-19 चीनी मौसम (उत्तर पूर्व ब्राजील समेत) में 30 मिलियन टन चीनी का उत्पादन होने की उम्मीद है, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 22 प्रतिशत कम है। दूसरी तरफ, भारत में 2018-19 सत्र (अक्टूबर-सितंबर) में 35.5 मिलियन टन उत्पादन का अनुमान लगाया गया है, जो 2017-18 में 32 मिलियन टन का रिकॉर्ड तोड़ रहा है।
उत्तर प्रदेश सबसे आगे…
देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश गन्ना और चीनी उत्पादन में भी पहले स्थान पर है। देश में उगाए जाए वाले गन्ने के कुल क्षेत्र में यूपी का हिस्सा लगभग 48% है और यह कुल गन्ना उत्पादन का 50% योगदान देता है। राज्य के 44 जिलों में चीनी उद्योग ही सबसे बड़ा प्रमुख उद्योग है । राज्य में तकरीबन 53.37 लाख गन्ना किसान हैं जो 182 गन्ना और चीनी मिल सहकारी समितियों के साथ जुड़े हुए हैं, जिनमें से 37 लाख किसानों ने 2017-18 के पिछले क्रशिंग सीजन में 1,111 लाख टन गन्ना की आपूर्ति की थी।
महाराष्ट्र में 10.75 लाख हेक्टर क्षेत्र में गन्ना फसल
महाराष्ट्र में चीनी उद्योग में गन्ना कटाई करनेवाले मजदूरों का एक बढ़ा तबका है, उन्होंने सरकार और चीनी मिलों के सामने उनकी मांगे रखी है, यह मांगे गन्ना सिझन के शुरू होने से पहले अगर पूरी नही की तो उन्होंने हड़ताल पे जाने की धमकी दी है। राज्य के गन्ना कटाई मजदूरों की मांगे अगर पूरी नही हुई तो वे गुजरात और कर्नाटक की ओर रुक करने का भी डर है, जिसकी वजह से महाराष्ट्र के चीनी मिलों को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। महाराष्ट्र में 1 अक्टूबर से कई चीनी मिलें अपना गन्ना क्रशिंग शुरू कर सकती है । राज्य में 1,000 लाख टन गन्ना क्रशिंग और 110-115 लाख टन चीनी उत्पादन होगा। इस साल राज्य में 10.75 लाख हेक्टर क्षेत्र में गन्ना फसल है ।
अत्याधिक चीनी उत्पादन गौरव और चुनौती भी…
भारतीय चीनी उद्योग को देश के सबसे बड़े उत्पादक के रूप में उभरने के साथ ही इतिहास में अपनी सबसे महत्वपूर्ण चुनौती का सामना करना पड़ेगा। चीनी के रिकॉर्ड उत्पादन के बाद अगर घरेलू और आतंरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमत और मांग में इजाफा नही हुआ तो फिर चीनी उद्योग को बहुत बड़ी आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। भारत में चीनी लगभग 25 मिलियन टन की घरेलू खपत को देखते हुए, पहले ही 10 मिलियन टन का चीनी का अधिशेष है और इस साल फिर 10 मिलियन टन का अधिशेष हो सकता है। याने की सितंबर 2019 तक देश में 20 मिलियन टन चीनी अतिरिक्त हो जाएगी। इतनी बड़ी मात्र में अतिरिक्त चीनी का क्या करें ? यह सरकार और चीनी उद्योग के सामने बड़ा सवाल है।
सरकार को उठाने होंगे ठोस कदम
अल्कोहोल और इथेनॉल की कम कीमते और अलग अलग राज्यस्तरीय करों ने चीनी उद्योग की कमर तोड़ी है। इन समस्याओं से घिरे चीनी उद्योग के सामने चीनी का रिकॉर्ड उत्पादन भी बड़ी चुनौती की तरह ही है, इससे निपटने के लिए सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने की जरूरत है । सरकार ने हाल ही में गन्ने का रस और बी-भारी गुड़ (मोलासिस) से इथेनॉल उत्पादन की अनुमति देने वाले पैकेज की घोषणा की है, लेकिन इसमें परिणाम दिखने में समय लगेगा। डिस्टिलरी क्षमता की स्थापना के लिए 44 अरब रुपये के सरकारी प्रायोजित सॉफ्ट लोन प्रावधान भी अभी प्राथमिक अवस्था में है। इथेनॉल के उत्पादन के बीच आनेवाले गतिरोध हटाने चाहिए और अलग अलग करों को समाप्त करना चाहिए।
इथेनॉल की न्यूनतम कीमत 54-55 रुपये प्रति लीटर आवश्यक
सरकारद्वारा मोलासिस से उत्पादित इथेनॉल के लिए 47.49 रुपये प्रति लीटर की कीमत तय की गई है, लेकिन चीनी उद्योग जगत के सूत्रों के अनुसार यह कीमत उचित नहीं है और यह उद्योग को प्रोत्साहित नहीं कर सकेंगी, जिससे चीनी उद्योग कम चीनी और अधिक इथेनॉल का उत्पादन करें। उसके लिए इथेनॉल की 54-55 रुपये प्रति लीटर की न्यूनतम कीमत की आवश्यकता है। इथेनॉल से पर्यावरणीय लाभ हैं और विदेशी मुद्रा बचाता है।
गन्ना किसानों की बकाया राशि अहम मुद्दा
इथेनॉल के अलावा, चीनी अधिशेष को कम करने का एकमात्र विकल्प निर्यात है। हालांकि सरकार ने इस साल सितंबर तक 2 मिलियन टन चीनी निर्यात करने का आदेश दिया था, लेकिन अब तक केवल एक चौथाई याने की ५ लाख टन चीनी ही निर्यात हो सकी है। देश के चीनी मिलें लगभग 160 अरब रुपये की बड़ी गन्ना की बकाया राशि अभीतक चूका नहीं पायी है, अब अक्तूबर से गन्ना सीझन शुरू होने के बाद बकाया और बढ़ने की उम्मीद है। किसानों की बकाया राशी अगले साल के आम चुनावों में विपक्ष के लिए एक चुनावी एजेंडा बन सकता है।