लखनऊ: प्रदेष के आयुक्त गन्ना एवं चीनी, श्री संजय आर. भूसरेड्डी द्वारा गन्ना प्रजाति Co 0238 में (लाल सड़न) रेड-राट रोग के प्रकोप की रोक-थाम/प्रभावी नियन्त्रण हेतु समस्त गन्ना परिक्षेत्रों को एडवाइजरी जारी करते हुये इस रोग से प्रभावित क्षेत्रों में बीज प्रतिस्थापन हेतु माइक्रोप्लान तैयार कर क्रियान्वयन सुनिष्चित करने के निर्देष जारी किये गये है।
यह जानकारी प्रदान करते हुये गन्ना आयुक्त द्वारा बताया गया कि प्रत्येक गन्ना प्रजाति की एक उम्र होती है उसके पश्चात उस गन्ना प्रजाति में अनुवांषिक हृास होने लगता है जिसके कारण पैदावार कम होने लगती है एंव प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है जिस कारण उस गन्ना प्रजाति पर कीट एंव रोगों का आपतन बढ़ने लगता है। अनुभव एवं वैज्ञानिक संस्तुतियों के अनुसार अन्य वैकल्पिक प्रजातियों का बीज उपलब्ध ना होने के कारण किसान भाइयोे को काफी आर्थिक नुकसान होता है। इस नुकसान से बचने के लिये किसान गन्ने की फसल में अनावश्यक पेस्टीसाइडस का इस्तेमाल न करें, यदि आवश्यकता हो तो अनुकूल समयावधि में ही इसका इस्तेमाल कम से कम किया जा सकता है। आयुक्त ने गन्ने के रोग लाल सड़न (रेड-राट) के निवारण की तकनीक पर भी प्रकाश डाला तथा इससे बचने के लिए कम से कम 40 प्रतिषत गन्ना क्षेत्रफल में नई अगैती गन्ना प्रजाति Co-0118, Coषा 8272, Co 94184 व Co 98014 को भी अपनाने की सलाह दी जिससे किसी एक प्रजाति पर निर्भरता कम हो सके। उन्होंने गन्ने की फसल में रोग होने पर फसल चक्र पद्धति अपनाने की सलाह भी दी।
उन्हेांने बताया कि कृषि पारिस्थितिकी की विभिन्नता के कारण रोगों की प्रमुखता क्षेत्रानुसार रहती है तथा प्रमुख रोग का आवश्यकतानुसार प्रबन्धन करना भी आवश्यक है। गन्ना उत्पादक कुछ जिलों में गन्ना प्रजाति Co 0238 में (लाल सड़न) रेड-राट रोग का प्रकोप पाया गया है, जिनमें जिला लखीमपुर-खीरी, पीलीभीत एवं जिला कुशीनगर के परिक्षेत्र सेवरही व रामकोला के आस-पास के क्षेत्र है इन क्षेत्रों में Co 0238 प्रजाति के गन्ना बुवाई को प्रत्येक दशा में रोकते हुए इसके स्थान पर किसी अन्य रेड राट रोधी प्रजाति को बढ़ावा दिये जाने तथा जहाॅ रेड राट का प्रभाव 20 प्रतिशत से अधिक है वहाॅ गन्ने की तत्काल कटाई करने तथा प्रभावित खेतों की तत्काल गहरी जुताई करते हुए गन्ने के ठूठों को जलाकर नष्ट करने के निर्देष भी दिये गये है।
श्री भूसरेड्डी ने इस रोग से बचाव के उपायों पर प्रकाष डालते हुये यह भी बताया कि रेड राट प्रभावित क्षेत्रों में केवल शरदकालीन गन्ने की बुवाई ही करे तथा शीत एवं वर्षा ऋतु के मध्य गन्ने के स्थान पर अन्य फसलों की खेती की जाये। प्रभावित क्षेत्रों के आस-पास जहाॅ स्वस्थ्य गन्ने की फसल है उन क्षेत्रों की विशेषकर गर्मी ऋतु के जुलाई माह तक कड़ी निगरानी की जाय, विभाग द्वारा जाराी एडवाईजरी में यह भी उल्लेख किया गया है कि यदि कल्ले निकलने की अवस्था में पौधो पर रेड राट का प्रभाव (Presence of spindle infection system) परिलक्षित होता है तो प्रभावित पौधो को निकाल करके नष्ट कर दिया जाय तथा शेष फसल पर स्स्टिमेटीक फंजीसाइड जैसे- कारबेन्डाजिम, थियोफैनेटेमेथाईल आदि का प्रयोग प्रत्येक माह के अन्तराल पर किया जाय और मानसून के प्रारम्भ तक तीन बार छिड़काव अवश्य कर दिया जाय। गन्ना बीज का शोधन/उपचार चीनी मिलों में उपलब्ध MHAT प्लांट के माध्यम से करा लिया जाये। पौधशालाओं में स्वस्थ्य सिंगिल बड से गन्ना बीज पैदा किया जाय तथा सिंगिल बड सेट्स को कार्बेंडाजिम के दो ग्राम प्रति ली. घोल में बुवाई से पूर्व आधे घंटे तक डुबाने के उपरान्त ही गन्ना बुवाई करे। पौधशालाओं में ट्राईकोडर्मा कल्चर फोरटीफाईड आरगैनिक मैन्योर का प्रयोग भी किया जाय।
आयुक्त द्वारा एडवाईजरी के माध्यम से समस्त गन्ना परिक्षेत्रों को निर्देषित किया गया है कि प्रभावित क्षेत्रों में बीज प्रतिस्थापन हेतु माईक्रोप्लान तैयार कर क्रियान्वयन किया जाये साथ ही गन्ना कृषकों को पम्पलेट, दैनिक समाचार पत्रों, मेला, वाल पेन्टिंग एवं कृषक गोष्ठियों के माध्यम से व्यापक प्रचार प्रसार करते हुए उन्हे जागरूक किया जाय कि वे गन्ना बुवाई हेतु प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करें। और कृषकों में स्वस्थ्य गन्ना बीज उत्पादन एवं वितरण भी किया जाये।
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