मुंबई : चीनी मंडी
कोरोना वायरस के प्रकोप ने सभी दुनिया को हिला के रख दिया है, इससे कोई भी क्षेत्र या उद्योग अभी तक नही बचा है। कोरोना के कारण चीनी बिक्री घटने से मिलर्स में भी घबराहट का माहोल है। अगर समय पर चीनी नही बेचीं गई, तो किसानों का भुगतान, बैंक लोन का भुगतान करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। चीनी मिलें, जो राज्य कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, कोरोना प्रकोप के कारण भारी आर्थिक मंदी का सामना कर रही है। अगर इस समस्या का समयपर समाधान नही खोजा गया, तो चीनी उद्योग खतरें में पड़ सकता है।
देश की चीनी उद्योग की समस्याओं को पूर्व ‘इस्मा’ अध्यक्ष रोहित पवार और ‘विस्मा’ के अध्यक्ष बी.बी.थोम्बरे ने केन्द्रीय खाद्य मंत्रालय के समक्ष प्रस्तुत किया है। देश के सहायक सचिव (चीनी) सुबोध कुमार सिंह को एक लिखित प्रस्ताव में, चीनी उद्योग ने तीन लिखित उपायों की रुपरेखा दी।
गन्ना किसानों और चीनी उद्योग के हितों को ध्यान में रखते हुए, पिछले दो साल में केंद्र सरकार ने कई रणनीतिक फैसले लिए है। इसलिए जब चीनी उद्योग को बढ़ावा मिल रहा है, तब कोरोना का सबसे बड़ा संकट खड़ा हुआ है। बड़े बाजार बंद होने से, माँल्स बंद होने से चीनी बिक्री बिल्कुल ठप्प हुई है। चीनी मिलों की गोदामों में चीनी बोरियों का ढेर लगा है।
देश भर में चीनी मिलें मार्च 2020 के लिए चीनी का आवंटित कोटा बाजार में मांग में कमी के कारण बेचने के लिए कड़ी मशकत कर रहे है। कोरोना वायरस के मद्दे नजर खाद्य मंत्रालय ने मार्च के लिए चीनी की मासिक बिक्री कोटे की समय अवधि को 15 दिन बढ़ाकर 15 अप्रैल 2020 तक करने का निर्णय लिया है। इस आदेश का कोई भी उल्लंघन होने पर सरकार द्वारा कार्यवाही की जायेगी। 28 फरवरी को जारी अधिसूचना में सरकार के खाद्य मंत्रालय ने मार्च के लिए देश के 545 मिलों को चीनी बिक्री का 21 लाख टन कोटा आवंटित किया था।
यह न्यूज़ सुनने के लिए प्ले बटन को दबाये.