नई दिल्ली: चीनी मंडी
चीनी अधिशेष को लेकर सरकार भी गंभीर दिखती हुई नज़र आ रही है और इसको कम करने के लिए विभिन उपाय पर काम कर रही है। खबरों के मुताबिक, अब खाद्य मंत्रालय ने पेट्रोलियम मंत्रालय से तेल विपणन कंपनियों को सीधे चीनी से बने इथेनॉल खरीदने के लिए कहा है, ताकि मिलें अधिशेष से छुटकारा पाने के लिए चीनी को इथेनॉल में बदल सकें। साथ ही यह भी कहा है कि, इथेनॉल की इस श्रेणी के लिए एक अलग कीमत तय की जाए।
फ़िलहाल में, सरकार ने बी-हैवी मोलेसेस से उत्पादित इथेनॉल की कीमत 52.43 रुपये और सीधे गन्ने के रस से बनी इथेनॉल की 59.13 रुपये प्रति लीटर निर्धारित की है। सी-हैवी मोलेसेस से प्राप्त इथेनॉल की कीमत वर्तमान में 43.46 रुपये प्रति लीटर है। चीनी से बने इथेनॉल मिलों को पुराने स्टॉक को इथेनॉल में बदलने में मदद करेगा और घरेलू बाजार में अधिशेष को काफी कम करेगा।
आपको बता दे, चीनी अधिशेष समस्या से जूझ रहे महाराष्ट्र की चीनी मिलों ने जुलाई में अतिरिक्त चीनी स्टॉक को इथेनॉल में बदलने के लिए केंद्र से अनुमति मांगी थी।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का भी मानना है कि चीनी उद्योग चीनी की अधिशेष से जूझ रहा है और इथेनॉल उत्पादन चीनी मिलों की वित्तीय स्थिति को मजबूत करेगा और साथ ही साथ चीनी अधिशेष को भी कम करने में मददगार साबित होगा। इथेनॉल उत्पादन पर जोर देते हुए गडकरी ने 4 जुलाई को लोकसभा में कहा था की चीनी मिलों को अब चीनी के उत्पादन के बजाय इथेनॉल के निर्माण पर ध्यान देना चाहिए।
केंद्र सरकार का 2030 तक पेट्रोल के साथ 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रित करने का लक्ष्य है। साखर परिषद 20-20 के दौरान भी गडकरी ने कहा था की अगले दो वर्षों में इथेनॉल का बाजार Rs 50,000 करोड़ तक बढ़ेगा और 2 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ने की क्षमता है। चीनी मिलें चीनी की कीमतों में कमी, अधिशेष स्टॉक और गन्ना बकाया जैसे मुद्दों का सामना कर रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इथेनॉल का उत्पादन चीनी मिलों को वित्तीय स्थिति में सुधार करने और गन्ना बकाया को दूर करने में मदद करेगा। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के मुताबिक 2019-20 सीजन के लिए चीनी का कैरीओवर स्टॉक लगभग 14.5 मिलीयन टन होने का अनुमान है।
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