बाजार में चावल, गेहूं और गन्ना की बुहतायत समस्या की ओर इशारा करते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने आज कहा कि देश में फसलों की खेती का स्वरूप बदलने की जरूरत है।
जल संसाधन मंत्री ने यह भी कहा कि हालांकि खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागत का डेढ़ गुना प्रदान करने का केंद्र सरकार का निर्णय एक “बहुत मुश्किल काम” था, लेकिन राजग सरकार इसे लागू करने के लिए प्रतिबद्ध थी।
एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन द्वारा जल प्रबंधन पर आयोजित तीन दिवसीय संगोष्ठी के उद्घाटन के अवसर पर गडकरी बोल रहे थे।
उन्होंने कहा, “आज पानी कोई समस्या नहीं है, लेकिन इसके प्रबंधन की समस्या है। समस्या कृषि लागत के बारे में भी है। हमें फसल पैटर्न बदलना (फसल विविधीकरण करना) होगा।” उन्होंने इस प्राकृतिक संसाधन (पानी) संरक्षण और प्रबंधन के लिए जल संसाधन मंत्रालय की विभिन्न परियोजनाओं को रेखांकित किया।
उन्होंने कहा कि फसल पैटर्न में बदलाव और ऊर्जा और बिजली क्षेत्र की ओर कृषि के विविधीकरण की जरूरत है।
देश में चीनी, गेहूं और चावल के अतिरिक्त स्टॉक की बात को रेखांकित करते हुए मंत्री ने बाकी फसलों में तिलहनों और मक्के के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करने की बात कही।
गडकरी ने कहा, “हमारे पास अधिशेष खाद्यान्न का भंडारण करने के लिए गोदाम नहीं हैं और 70 प्रतिशत खाद्य तेलों का आयात किया जाता है। सोयाबीन की उपज की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है … हमें वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पर गौर करते हुए फसल पैटर्न के बारे में कुछ नई नीतियां तलाशने की जरूरत है।’’
एमएसपी के बारे में उन्होंने कहा कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने निवेश लागत के 1.5 गुना किसानों को दिलाने का आश्वासन दिया था। “लेकिन मोरा मानना है कि यह एक कठिन काम है, लेकिन हमारी सरकार इसके प्रति बहुत प्रतिबद्ध है।”
संगोष्ठी के दौरान कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन का 92 वां जन्मदिन समारोह भी मनाया गया। इसमें गडकरी के साथ कर्नाटक के कृषि मंत्री एन एच शिवशंकर रेड्डी ने भी भाग लिया।