गन्ने की परंपरागत खेती के जरिए जैविक चीनी क्रान्ति को दिया जा सकता है बढ़ावा

नई दिल्ली, 16 अगस्त: वैश्विक जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच समस्त दुनिया हरित क्रांति की ओर ध्यान दे रही है। संयुक्त राष्ट्र के कृषि एवं खाद्य परिषद ने वैज्ञानिकों से परंपरागत खेती अनुकूल प्रौद्योगिकी अपनाने पर ज़ोर देते हुए एशिया महाद्वीप में जैविक कृषि उत्पादन बढाने पर ज़ोर दिया है।एफएओ के सहायक महानिदेशक कुंधवी कादिरेस ने कहा कि उत्पादन में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाली हरित खेती को अपनाने के लिए कीटनाशक रहित खेती पर ज़ोर देने की ज़रूरत है।

कुंधवी का मानना है कि भारत जैसे देश में संवेदनशील खोजों और प्रौद्योगिकियों को अपनाकर गन्ना और मक्का जैसी नगदी फ़सलों की रसायन रहित खेती करने की आज ज़रूरत है।

बॉरलॉग इंस्टीट्यूट फ़ॉर साउथ एशिया के पूर्व महानिदेशक डॉ एपी गुप्ता ने कहा कि भारत में गन्ने की परंपरागत तरीक़े से खेती कर हम रसायन रहित चीनी का नया बाज़ार तैयार कर सकते है। इससे सामान्य चीनी की तुलना में जैविक चीनी के दाम भी ज़्यादा मिलेंगे और लोगों का स्वास्थ्य भी सुधरेगा। डॉ गुप्ता ने कहा कि इस पहल से भारत जैविक चीनी का निर्यात कर एशिया में जैविक चीनी क्रान्ति ला सकता है।

डॉ गुप्ता ने कहा कि हमारे यहाँ किसान गन्ना की फ़सल में किसान कीट पतंगो की रोकथाम और तना सडन जैसे रोगों से फ़सल की रोकथाम के लिए रसायनों का छिड़काव करते है। इसके अलावा बढ़वार और अन्य फ़ायदों के लिए ऊर्वरकों का इस्तेमाल करते है। ग़ैर जैविक तरीक़े से उत्पादित गन्ने के प्रसंस्करण से तैयार की गयी चीनी में रसायनों के अवशेषी प्रभाव लैब रिपोर्ट्स देखे गए है जो घातक है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ जेपीएस डबास ने कहा कि गन्ना जैसी फ़सलों में अधिक लाभ लेने के लिए किसान रसायन का उपयोग कर अल्प समय के लिए तोअच्छा उत्पादन ले सकते है लेकिन दीर्घकालिक लाभ के लिए जैविक पद्धतियों को अपनाने की ज़रूरत है इससे इन्सान की सेहत सुधरने के साथ साथ मृदा स्वास्थ्य में भी उत्तरोत्तर प्रगति देखी जा सकती है।

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