चीनी अधिशेष को कम करने के लिए, भारत सरकार ने 28 अगस्त को चीनी निर्यात सब्सिडी की घोषणा की। भारतीय चीनी उद्योग ने इस कदम का स्वागत किया है, लेकिन अन्य देश इससे असंतुष्ट हैं। ब्राजील के चीनी उद्योग समूह UNICA का आरोप है कि इस घोषणा से वैश्विक चीनी कीमतों में बाधा आएगी।
UNICA ने कहा, “भारत सरकार द्वारा घोषित नई चीनी निर्यात सब्सिडी सही नहीं हैं और यह कम वैश्विक चीनी कीमतों पर और असर डालेगी। यह विश्व व्यापार संगठन (WTO) द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार भी नहीं है।” भारत सरकार ने कहा है की निर्यात सब्सिडी WTO के संगत के अनुसार है।
सिर्फ ब्राजील ही नहीं, यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया और ग्वाटेमाला भी भारत की चीनी सब्सिडी के खिलाफ हैं। प्रतिद्वंद्वी देशों का आरोप है कि भारत की सब्सिडी WTO के दायित्वों के असंगत है और चीनी बाजार को विकृत कर रही है।
ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और ग्वाटेमाला ने भारत की चीनी सब्सिडी के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन का दरवाजा खटखटाया था, जिसके बाद 15 अगस्त को डब्ल्यूटीओ ने इस मुद्दे पर पैनल गठित किया।
सरकार ने 60 लाख मीट्रिक टन चीनी निर्यात के लिए सब्सिडी देने का निर्णय लिया है। इस निर्णय से सरकार पर 6268 करोड़ रुपयों का ख़र्च आएगा। कैबिनेट ने चीनी सीजन 2019-20 के लिए चीनी मिलों को निर्यात करने के लिए 10,448 रुपए प्रति टन के हिसाब से सब्सिडी देने को मंजूरी दी है।
चीनी निर्यात पर सब्सिडी देने का मकसद चीनी अधिशेष खपाना और किसानों के भारी भरकम गन्ना बकाए का भुगतान करने में चीनी मिलों का मदद करना है। हालही में सरकार ने चीनी अधिशेष को कम करने के मकसद से चीनी के बफर स्टॉक के निर्माण को मंजूरी थी। सरकार के इस कदम से चीनी मिलों को गन्ना किसानों का बकाया चुकाने में मदद मिल रही है। सरकार ने चीनी उद्योग को राहत देने के लिए हर मुमकिन कोशिश की है, जिसमे सॉफ्ट लोन, निर्यात सब्सिडी और चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य में वृद्धि शामिल है।
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