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नई दिल्ली, 6 जून, वैश्विक जलवायु परिवर्तन समस्त ऋष्टि के लिए चुनौती बना हआ है। तापमान में बढ़ोतरी और कमी के अलावा बैमौसम बारिश और सूखे का प्रभाव वैसे तो सभी फसलों के लिए नुकसानदायी है लेकिन गन्ना की अगर बात करें तो इसकी खेती भी जलवायु परिवर्तन की मार से अछूती नहीं है। गन्ने की खेती किसानों की आमदनी बढ़ाने के साथ- साथ देश की कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि मानी जाती है, इसलिए जलवायु परिवर्तन का प्रभाव किसान और चीनी उद्योग दोनों पर आर्थिक तौर पर समानान्तर पडता है।
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के पूर्व कुलपति डॉ. यूएस शर्मा के अनुसार वर्तमान में जिस तरह से तापमान में इजाफा हो रहा है इससे गन्ने की उत्पादकता के साथ साथ गन्ने के रस की मिठास और बाद में उससे निर्मित चीनी की उत्पादन मात्रा में कमी दर्ज हो रही है। वैज्ञानिक शोध में पता चला है कि तापमान बढ़ने के कारण फसल को पानी की उपलब्धता कम होने के चलते कम सिंचित इलाकों में गन्ने की फसल का उत्पादन घट रहा है साथ ही गन्ने की लम्बाई, मोटाई भी कम हो रही है । गन्ना, गेहूं, जौ, कसावा, मक्का, ऑयल पाम, सरसों, धान, ज्वार और सोयाबीन जैसी दुनिया की दस मुख्य फसलें खेतों में पैदा होने वाली कैलोरी का 83 फीसदी देती हैं, लेकिन तापमान में बढ़ोतत्तरी के कारण इन फसलों से उत्पादित कैलोरी में गुणात्मक रूप में कमी दर्ज की गयी है।
श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर के प्रोफेसर डॉ. श्रवण सि्ंह ने कहा कि कृषि जलवायु परिवर्तन के कारण गन्ने के उत्पादन में कमी की संभावना पहले से जताई जाती रही है वैज्ञानिक समुदाय इस ओर ध्यान दे रहा है। ड़ॉ. सिंह ने कहा कि वैज्ञानिक शोध साफ तौर पर बता रहे है कि गन्ने की खेती की भौगौलिक स्थितियां अनुकूल होने पर ही अच्छी और लाभदायक रहती है। तापमान का बढ़ना और जरूरत से ज्यादा कम होना या अन्य विषमता की स्थितियां गन्ने की फसल के लिए नुकसान दायक है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक ड़ॉ. एके सिंह ने कहा कि आईसीएआर बदलते दौर के अनुरुप जलवायु परिवर्तन की स्थितियों के मदद्यनजर गन्ने की ऐसी किस्मों निकालने पर काम कर रहा है जो जलवायु परिवर्तन के खतरों के प्रति सहनशील हो।
डॉ. एके सिंह ने कहा कि आईसीएआर के गन्ना अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार गन्ने की CO-0238 किस्म एसी ही किस्म है जो किसानों के लिए उत्पादन और लाभ की दृष्टि से काफी उपयुक्त साबित हो रही है।
बॉरलोग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया के महानिदेशक डॉ. एचपी गुप्ता ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग है एवं ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण पर्यावरण में कार्बन डाइ ऑक्साइड, मीथेन नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में वृद्धि होना है। इनकी वजह से पृथ्वी के औसत तापमान बढ़ोत्तरी होने के कारण कई तरह के नकारात्मक प्रभाव हमारे सामने है ।
कृषि मंत्रालय भारत सरकार के आयुक्त डॉ. एस. के. मल्होत्रा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन विभिन्न प्रकार से कृषि को प्रभावित करता है। कृषि की उत्पादकता बढ़ाने में उपजाऊ मृदा, जल, अनुकूल वातावरण, कीट-पतंगों से बचाव आदि का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। प्रत्येक फसल को विकसित होने के लिये एक उचित तापमान, उचित प्रकार की मृदा, वर्षा तथा आर्द्रता की आवश्यकता होती है और इनमें से किसी भी मानक में परिवर्तन होने से, फसलों की पैदावार प्रभावित होती है। वैश्विक जगत के कृषि वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए शोधपरक नीति बनाकर आगे बढ़ने के साथ काम करने की जरूरत है।