कोल्हापुर (महाराष्ट्र): चीनी भारत में सबसे अधिक विनियमित वस्तुओं में से एक है। केंद्र सरकार मूल्य परिवर्तन, कुल स्टॉक उपलब्धता, गन्ना उत्पादन आदि पर बारीकी से नजर रखती है। चीनी मूल्य निर्धारण नीति कई वर्षों से चर्चा का विषय रही है, जिसमें उद्योग एक समान चीनी मूल्य निर्धारण नीति का समर्थक रहा है, जो बाजार की गतिशीलता पर आधारित है। सरकार ने समय-समय पर चीनी मिलों को स्थिर नकदी प्रवाह अर्जित करने और किसानों को समय पर गन्ना मूल्य भुगतान करने में सक्षम बनाने के लिए उपाय पेश किए हैं।
चीनी में दोहरी मूल्य निर्धारण नीति (Dual sugar pricing policy) के बारे में चर्चा हुई है, जिस पर भारी बहस चल रही है। क्या यह दोहरी मूल्य निर्धारण नीति भारत में काम करेगी? इसे कैसे क्रियान्वित किया जाएगा? यह मंथन और चर्चा का विषय बना हुआ है। इस लेख में, हम दोहरी मूल्य निर्धारण नीति और उद्योग से जुड़े जानकार इसके बारे में क्या सोचते हैं, इसे बेहतर ढंग से समझेंगे ।
दोहरी मूल्य निर्धारण नीति क्या है?
दोहरी कीमत का सीधा सा मतलब है एक ही उत्पाद के लिए दो अलग-अलग खरीदारों के लिए दो अलग-अलग कीमत होना। चीनी में दोहरी मूल्य निर्धारण नीति का विचार कृषि मूल्य निर्धारण और लागत आयोग (सीएसीपी) द्वारा पेश किया गया था, जो कृषि मूल्य निर्धारण के संबंध में सरकार को सिफारिश करता है। गन्ने की कीमत नीति 2019-20 एसएस रिपोर्ट में, सीएसीपी ने चीनी पर दोहरी मूल्य निर्धारण नीति पर विचार करने का सुझाव दिया, जिसमें घरेलू खपत और संस्थागत या थोक उपभोक्ताओं के लिए चीनी की दो अलग-अलग कीमतें होंगी। सीएसीपी ने किसानों को राजस्व साझेदारी फॉर्मूला (RSF) और FRP के बीच अंतर को वित्तपोषित करने के लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष (PSF) स्थापित करने के लिए इस पर बातचीत शुरू की। भारत में, कुल चीनी मांग का लगभग 60% हिस्सा चीनी के थोक उपभोक्ताओं का है, जबकि 40% घरेलू चीनी उपभोक्ता हैं। चीनी के बड़े उपभोक्ताओं में मिष्ठान्न और पेय निर्माता शामिल है।
चीनी उद्योग इस बारे में क्या सोचता है?
चीनी उद्योग के जानकारों की इस पर संमिश्र राय है। जबकि कुछ हलकों में, उद्योग समर्थकों को लगता है कि दोहरी कीमत चीनी मिलों की वित्तीय कठिनाइयों का रामबाण इलाज होगी। कुछ अन्य लोग भी हैं जो महसूस करते हैं कि दोहरी कीमत व्यावहारिक नहीं है और इससे अनुचित व्यापार हो सकता है।
कर्मयोगी अंकुशराव टोपे समर्थ सहकारी साखर कारखाना लिमिटेड के प्रबंध निदेशक दिलीप पाटिल ने कहा, चीनी के लिए दोहरी मूल्य निर्धारण नीति एक जटिल और विवादास्पद मुद्दा है, जिसमें चीनी उद्योग और उसके हितधारकों के लिए फायदे और नुकसान दोनों है। एक तरफ, इससे चीनी मिलों को थोक उपभोक्ताओं से अधिक राजस्व अर्जित करने में मदद मिल सकती है, जो चीनी के लिए अधिक भुगतान कर सकते है। यह सरकार को घरेलू उपभोक्ताओं को सब्सिडी देने में भी मदद कर सकता है, जो चीनी की कीमत में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील है। दूसरी ओर, यह चीनी बाजार में विकृतियां और अक्षमताएं पैदा कर सकता है, क्योंकि इससे चीनी की तस्करी, जमाखोरी, मिलावट और कालाबाजारी हो सकती है। इसलिए, चीनी के लिए दोहरी मूल्य निर्धारण नीति को उचित निगरानी और विनियमन के साथ सावधानीपूर्वक डिजाइन और कार्यान्वित करने की आवश्यकता है।
नेशनल फेडरेशन ऑफ को ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज़ लिमिटेड के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे दोहरी मूल्य निर्धारण नीति पर अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण रखते है। उन्होंने कहा, चीनी की दोहरी कीमत तार्किक होने और तीनों हितधारकों के लिए फायदे का फॉर्मूला होने के बावजूद बहुत लंबे समय से विचाराधीन है। औद्योगिक थोक खरीदारों के लिए कीमत ₹60/किग्रा और घरेलू ग्राहकों के लिए ₹30/ किलो चीनी मिल मालिकों, गन्ना उत्पादकों और आम उपभोक्ताओं के लिए फायदेमंद साबित होगी। औद्योगिक खरीदार मिठाई, पेय पदार्थ, बिस्कुट, चॉकलेट, आइसक्रीम आदि जैसे तैयार उत्पादों पर अपने वर्तमान भारी लाभ मार्जिन में इस कीमत को आसानी से अवशोषित कर सकता है।
चीनीमंडी के सह-संस्थापक और सीईओ उप्पल शाह इस पर संतुलित विचार रखते हैं। उन्होंने टिप्पणी की कि, अगर सरकार को लगता है कि चीनी के लिए दोहरी मूल्य निर्धारण नीति यह ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण है कि चीनी मिलों के पास तरलता की समस्या है क्योंकि उन्हें किसानों को समय पर गन्ना मूल्य भुगतान करना है और अन्य लागतों के लिए भी प्रावधान करना है, तो विकल्प तलाशने में कोई नुकसान नहीं है। हालाँकि, चीनी के लिए दोहरे मूल्य निर्धारण के कार्यान्वयन के लिए सावधानीपूर्वक योजना और कार्यान्वयन की आवश्यकता होगी क्योंकि एक ही उत्पाद के लिए दोहरी कीमतों का प्रबंधन करना एक कठिन कार्य होगा। इसके लिए उचित एसओपी होना चाहिए।