‘एमएसपी’ तंत्र में बदलाव की मांग

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नई दिल्ली : चीनी मंडी

बाजार में मांग की कमी के कारण महाराष्ट्र में मिलर्स के लिए चीनी बेचना मुश्किल हो गया है, जिससे किसानों को भुगतान करना दिनोंदिन मुश्किल होता जा रहा है। महाराष्ट्र राज्य सहकारी चीनी मिल महासंघ ने केंद्र से उत्तर, पश्चिम और दक्षिण भारत की मिलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तंत्र में बदलाव का आग्रह किया है।

यूपी मिलर्स का दबदबा…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में महासंघ ने सुझाव दिया है की, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश (यूपी), पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, बिहार, में मिलों के लिए गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र में मिलों से एमएसपी 150-200 रुपये प्रति क्विंटल अधिक रखा जाना चाहिए। बाजार में मांग की कमी के कारण महाराष्ट्र में मिलर्स के लिए चीनी बेचना मुश्किल हो गया है, जिससे किसानों को भुगतान करना मुश्किल हो गया है। दिल्ली, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और गुजरात के बाजारों में अब यूपी मिलर्स का दबदबा है। यूपी की घरेलू खपत लगभग 37-38 लाख टन है, जबकि कुल उत्पादन 87 लाख टन से अधिक है, जिससे बिक्री के लिए अतिरिक्त स्टॉक बचा है।

एमएसपी सभी लागतों के उचित लेखांकन द्वारा तय करने की मांग….

2019-20 सीज़न के लिए चीनी का एमएसपी सभी लागतों के उचित लेखांकन द्वारा तय किया जाना चाहिए, क्योंकि ब्याज भुगतान का बहिर्वाह 350 रुपये प्रति क्विंटल पर पर्याप्त है। राज्य-वार आंकड़ों और अधिक विशेष रूप से सहकारी मिलों का विचार करके चीनी को गन्ने के रूपांतरण की लागत को तर्कसंगत रूप से लागू किया जाना चाहिए। एमएसपी को हमेशा उप-उत्पाद प्राप्ति के चीनी शुद्ध उत्पादन की लागत से ऊपर तय किया जाना चाहिए। महासंघ के शीर्ष अधिकारियों ने कहा कि, वर्तमान परिस्थितियों में 3,100 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी को तुरंत संशोधित कर 3,500 रुपये प्रति क्विंटल किया जाना चाहिए।

बैंकों द्वारा बफर स्टॉक योजना के तहत 100% वित्त सहायता मिले…

10% से 15% तक तरलता में सुधार के लिए बैंकों द्वारा बफर स्टॉक योजना के तहत 100% वित्त के लिए बैंकों को अधिसूचना जारी की जानी चाहिए। महासंघ ने 2018-19 के मौसम के दौरान वास्तविक गन्ने की पेराई के लिए 500 रुपये प्रति टन की अनुदान राशि की एकमुश्त सहायता मांगी है, जो अनिवार्य रूप से चीनी के बाजार मूल्य में अंतर के कारण चीनी उद्योग को 2017-18 और 2018-19 सीज़न के दौरान इसकी उत्पादन लागत में हुए नकद घाटे को कवर करने के लिए है।

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