औद्योगिक क्रांति के साथ-साथ कृषि उद्यमी भी कृषि और खाद्य उत्पादन सम्बन्धी विभिन्न आयामों में कुछ नए प्रयोग करने की कोशिश करते रहे हैं। इन उद्यमियों ने लगातार कृषि-वैज्ञानिकों को उन प्रौद्योगिकियों और तकनीकों की खोज करने के लिए समर्थन दिया है जो समाज, देश के साथ-साथ दुनिया के समग्र विकास के लिए भोजन, फाइबर, ईंधन, चारा प्रदान कर सकते हों। माइक्रो और नैनो इकाइयों के आविष्कार के बाद से, वैज्ञानिक सूक्ष्म और नैनो उत्पादों को बनाने के लिए एक आकर्षण के रूप से प्रयास कर रहे हैं जिनका उपयोग कृषि के क्षेत्र में किया जा सकता है। सूक्ष्म सिंचाई एक बहुत ही लोकप्रिय शब्द है जिसका उपयोग हितधारक कृषि में जल दक्षता को बढ़ावा देने के लिए किया गया है।
पिछले कुछ दशकों से वैज्ञानिक नैनो प्रौद्योगिकियों पर काम कर रहे हैं। नैनो टेक्नोलॉजी की मदद से सामग्री के भौतिक और रासायनिक गुणों को बढ़ने के साथ ही उसके आकार को इसके काफी कम किया जा सकता है। फसल स्वास्थ्य प्रबंधन के क्षेत्र में, वैज्ञानिकों ने एक हद तक उपलब्धि हासिल की है, और नैनो उत्पादों को विकसित किया है जिनका उपयोग फसल के विकास को बढ़ावा देने के लिए आसान तरीके से किया जा रहा है। केवल पिछले दो वर्षों के दौरान ही कम लागत वाली फसल प्रबंधन तंत्र को बढ़ावा देने और स्थापित करने के लिए नैनो यूरिया के उपयोग के तहत हजारों एकड़ भूमि को लाया गया है।
डॉ आलोक पाण्डेय, सॉलीडैरीडाड के प्रधान प्रबंधक– सतत गन्ना विकास ने चीनीमंडी से बातचीत में कहा की इथेनॉल के लिए गन्ने की बढ़ती मांग के साथ, बड़ी संख्या में गन्ना उत्पादक विभिन्न सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं और उच्च उपज प्राप्त करने की उम्मीद के साथ अपने खेत में नैनो यूरिया का छिड़काव कर रहे हैं। चीनी मिलें और कृषि-तकनीक सेवा प्रदाता भी इस दिशा में सहयोगात्मक प्रयास कर रहे हैं और किसानों का समर्थन कर रहे हैं। गन्ने की खेती में नैनो यूरिया के उपयोग को उस समय विशेष रूप से बढ़ावा दिया जा रहा है जब गन्ने की फसल पांच फीट या उससे अधिक की ऊंचाई तक पहुंच जाती है।
उन्होंने आगे कहा की उत्तर प्रदेश के गन्ना उत्पादकों को रेड रॉट रोग के कारण गन्ने की खेती में हो रही समस्या को ध्यान में रखते संभावना है कि आने वाले समय में गन्ने और उसके परिणाम स्वरुप चीनी/ इथेनॉल के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इस स्थिति का मुकाबला करने के लिए नैनो प्रौद्योगिकियों की मदद से रोगज़नक़ (पैथोजेन) के निदान पर काम करने की आवश्यकता है। नैनो कणों का उपयोग बैक्टीरिया, वायरल और फंगल रोगजनकों का पता लगाने के लिए एक प्रभावशाली उपकरण के रूप में किया जा सकता है।
गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयम्बटूर सहित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) से संबद्ध संस्थानों ने इस दिशा में कुछ काम शुरू किया है। लेकिन एथनॉल मिश्रण से जुड़े लक्ष्य को हासिल करने में सरकार का साथ देने के लिए इस मोर्चे पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए चीनी मिलों और व्यवसायों (तेल/ पेय पदार्थ निर्माण करने वाली कंपनियों) से निवेश किया जाना चाहिए ताकि उनकी मांग और आपूर्ति को उचित रूप से प्रबंधित किया जा सके।