कोल्हापूर : चीनीमंडी
पुणे में हाल में हुई चीनी परिषद में, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने चीनी उद्योग से कहा की, अधिशेष चीनी उत्पादन से अगर छुटकारा पाना है, तो मिलों को चीनी के बजाय इथेनॉल उत्पादन को बढावा देना चाहिए। मिलें अगर ऐसा नही करती है, तो उनका भविष्य खतरें मे पड सकता है। दुसरी तरफ पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने भविष्यवाणी की है कि, अगर मिलों की उत्पादन लागत कम नही होती है, तो मिलों को मुश्किलों से कोई नही बचा सकता। पवार के बयान के बाद एक बार फिर से मिलों की चीनी उत्पादन लागत का मुद्दा सामने आया है। मिलों को अगर सही सही चलाना है, तो उन्हे किसी भी हालात मे उत्पादन लागत मानदंडों पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है।
चीनी मिलों के संचालन की लागत के बारे में वर्ष 2002 में चीनी आयुक्त द्वारा एक सीमा निर्धारित कि गई थी, लेकिन वर्ष 2011 में, चीनी आयुक्त ने ही इसे रद्द कर दिया। कुछ चीनी मिलें उत्पादन लागत के लिए तय किये गये मानदंडों को रद्द करने के कारण उत्पादन पर मनचाहा खर्चा कर रही हैं, जिससे उनका भविष्य खतरे में है। वर्ष 2002 के दौरान, चीनी आयुक्त ने एक टन गन्ने के लिए 319 रुपये खर्च की सीमा निर्धारित कि थी। कुछ चीनी मिलों का दावा है कि, यह सीमा पुरानी है और बढ़ती महंगाई के कारण उत्पादन लागत इससे कई गुना ज्यादा है।
नाबार्ड द्वारा एमएसपी पॅकेज के लिए निर्धारित 23 शर्तों में से पहली दो शर्तें काफी महत्वपूर्ण हैं। पहली शर्त यह है कि, चीनी का प्रति टन उत्पादन लागत खर्च 225 रुपये से अधिक और दूसरी शर्त यह है कि, परिवहन लागत 150 रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए। इस बारे में नाबार्ड के साथ एक अनुबंध भी किया गया है। उस समय, महाराष्ट्र की औसत परिवहन लागत 225 रुपये प्रति टन थी और पश्चिमी महाराष्ट्र की लागत कम से कम 191 रुपये 40 पैसे और अधिकतम 262 रुपये 50 पैसे थी।
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