भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल गन्ने की सूखा प्रतिरोधी किस्में विकसित करने पर जोर

कोयंबटूर: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक (फसल विज्ञान) टी.आर. शर्मा ने कहा कि, भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल गन्ने की सूखा प्रतिरोधी किस्में विकसित करने की आवश्यकता है। अंतरराष्ट्रीय गन्ना प्रौद्योगिकी सोसायटी (आईएसएससीटी) और आईसीएआर-गन्ना प्रजनन संस्थान द्वारा यहां आयोजित ‘जर्मप्लाज्म एवं प्रजनन तथा आणविक जीव विज्ञान कार्यशाला’ का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि, 100 से अधिक देशों में 26 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर गन्ने की खेती की जाती है, जिसमें भारत में पांच मिलियन हेक्टेयर भूमि शामिल है। दुनिया भर में हर साल करीब 1.9 बिलियन टन गन्ने का उत्पादन होता है।

गन्ना दुनिया में 80% चीनी और 40% बायो एथेनॉल का उत्पादन करता है। भारत चीनी और चीनी उत्पादों के प्रमुख उत्पादकों में से एक है। गन्ने का जीनोम जटिल है और यह एक बहुत ही जटिल फसल है। गन्ने का जीनोम मार्च में जारी किया गया था। उन्होंने कहा कि, शोधकर्ताओं के लिए व्यक्तिगत जीन की पहचान करना और उनके कार्यों को जानना आवश्यक है।

आईसीएआर के सहायक महानिदेशक प्रशांत दाश ने कहा कि, गन्ने के जीनोम अनुक्रम का उपयोग करना महत्वपूर्ण है ताकि किसानों की सामाजिक-आर्थिक और आजीविका को पूरा किया जा सके। कोयंबटूर के गन्ना प्रजनन संस्थान की निदेशक जी. हेमप्रभा ने विस्तार से बताया कि गन्ना किस तरह एक महत्वपूर्ण फसल है। इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ शुगर केन टेक्नोलॉजीज के एंजेलिक ढोंट, माइकल कीथ बटरफील्ड और जॉर्ज पाइपरिडिस ने भी बात की।

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