इथेनॉल उत्पादन चीनी मिलों को अपनी वित्तीय स्थितियों में सुधार करने में मदद कर सकता है: सुधांशु पांडे

राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर के द्वारा आयोजित किए जा रहे पाँच दिवसीय ऑनलाइन कार्यक्रम “Executive Development Programme” का शुभारंभ श्री सुधांशु पांडे, सचिव (खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण), भारत सरकार के द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम में भारतीय और विदेशी चीनी उद्योग के लगभग 100 वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा भाग लिया जा रहा है। श्री सुधांशु पांडे, सचिव (खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण), भारत सरकार ने अपने संबोधन में, संस्थान के द्वारा इस प्रकार ऑनलाइन आयोजन संबंधी प्रयासों की प्रशंसा करते हुए कहा कि चीनी उद्योग मे कार्यरत कार्मिकों के ज्ञान को समृद्ध करने के उद्देश्य से ऐसे ऑनलाइन कार्यक्रम और ज्यादा से ज्यादा आयोजित किए जाने चाहिए जिससे एक आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से समृद्ध चीनी उद्योग का विकास सुनिश्चित हो सके। वैश्विक शर्करा परिदृश्य के बारे में बताते हुये उन्होने कहा कि वर्तमान समय मे ऐसे चीनी कारखानों का विकास किया जाना चाहिए जो चीनी के साथ-साथ ईथनोल के उत्पादन मे बाजार के मांग की आपूर्ति और आर्थिक लाभ दोनों मे सामंजस्य स्थापित कर सकें। उन्होने इसके साथ ही चीनी कारखानों को “आत्मनिर्भर” बनाने के उद्देश्य से कारखानों को जैव-ऊर्जा तथा अन्य मूल्यवर्धित उत्पादों के साथ-साथ उन्हे विशिष्ट शर्करा (Special Sugar) उत्पादन के केंद्र के रूप मे विकसित किए जाने पर बल दिया।

श्री सुबोध कुमार सिंह, संयुक्त सचिव (चीनी और प्रशासन), भारत सरकार ने चीनी कारखानों से पेट्रोल मे इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (ईथनोल ब्लेंडिंग) को ध्यान मे रखते हुये ईथनोल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए गन्ने के रस, सीरप और बी हैवी शीरा जैसे सह-उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देने का आह्वान किया। जिससे इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम के लिए आवश्यक ईथनोल की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके और चीनी उत्पादन एवं खपत के अनुरूप संतुलन स्थापित किया जा सके। इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम के अनुसार जहाँ हमे 10% ईथनोल सम्मिश्रण करने की आवश्यकता है हम उसके स्थान पर केवल 5% ही ईथनोल का सम्मिश्रण कर पा रहे हैं। अतः वर्तमान मे ईथनोल की मांग के संदर्भ मे आश्वस्त हुआ जा सकता है। इसके साथ ही उन्होने यह भी कहा कि ईथनोल का उत्पादन चीनी कारखानों के आर्थिक लाभ के साथ-साथ राष्ट्रहित से भी जुड़ा है क्योंकि इससे ऊर्जा सुरक्षा के साथ-साथ स्वच्छ और हरित ईंधन का विकास एवं कच्चे तेल के आयात को कम करते हुये विदेशी मुद्रा के संरक्षण के लक्ष्य को भी प्राप्त किया जा सकता है।

राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन, निदेशक ने “Strategic Planning & Optimization of Resources” विषय पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होने कहा कि सरप्लस चीनी उत्पादन और कोविड-19 के प्रभाव को देखते हुये सभी चीनी उद्योग के कार्यकारी अधिकारियों को “पुनरावलोकन, पुनर्नियोजन एवं पुनः संयोजन” (Revisit, Reorient & Recreate) के मंत्र को ध्यान मे रखना चाहिए जिससे वर्तमान परिदृश्य मे सर्वश्रेष्ठ वाणिज्यिक मॉडल को विकसित किया जा सके। “फार्म से उपभोक्ता तक” सुरक्षित खाद्य-पदार्थ की आपूर्ति एवं “N-O-N” अर्थात नेचुरल (प्राकृतिक), ओर्गेनिक (कार्बनिक) एवं न्यूट्रीटिव (पोषकता से भरपूर) उत्पादन पद्धति को चीनी उद्योग को अपने एजेंडा मे शामिल किया जाना चाहिए। क्वींसलैंड टेक्नोलोजी यूनिवर्सिटी, आस्ट्रेलिया के प्रोफेसर रॉस ब्रॉडफुट ने तकनीकी परिदृश्य पर विचार रखते हुये कहा कि चीनी उत्पादन मे शामिल देशों को नियमित रूप से परिवर्तित होते वाणिज्यिक मॉडल एवं तकनीकी विकास को आत्मसात करने की जरूरत है। विभिन्न प्रकार के उत्पादों को विकसित करने से आर्थिक रूप से चीनी पर निर्भरता कम होती है। आस्ट्रेलिया की चीनी मिलों मे प्रचलित मॉडल का उल्लेख करते हुये उन्होने चीनी उत्पादन लागत को कम करने के लिए आवश्यक कार्ययोजना पर बल दिया। आईआईटी-रुड़की के प्रोफेसर डॉ. विनय शर्मा ने अपना व्याख्यान “सहयोगात्मक नेतृत्व और नेतृत्व का विकास” विषय पर दिया। उन्होने कहा कि उच्च उत्पादकता एवं अनुकूल वाणिज्यिक माहौल के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक कार्मिक अपने उत्तरदायित्व का समुचित निर्वहन करे। उन्होने इसके साथ ही यह भी कहा कि वर्तमान मे कौशल विकास के माध्यम से आवश्यक नेतृत्व कौशल को विकसित किया जाना भी आवश्यक है।
उपरोक्त संबोधनों से पूर्व इस कार्यक्रम के संयोजक प्रो. डी. स्वैन ने मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि एवं अन्य सभी प्रतिभागियों का कार्यक्रम मे स्वागत करते हुये आगामी पाँच दिवसीय कार्यक्रम की रूपरेखा के विषय मे आवश्यक जानकारी दी।

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