नई दिल्ली : चीनी मंडी
मर्चेंट एक्सपोर्टर्स, मिलर्स और ट्रेड हाउस के सूत्रों ने कहा कि, भारतीय चीनी मिलों ने नवंबर और जनवरी के बीच 2.5 लाख टन सफेद और कच्ची चीनी के निर्यात के लिए अनुबंध किया है। केंद्र सरकार से राजकोषीय प्रोत्साहनों और अतिरिक्त चीनी के लिए भंडारण स्थान की कमी के चलते शीर्ष चीनी उत्पादक, बड़े पैमाने पर चीनी निर्यात करने की संभावना है। घरेलू और आंतरराष्ट्रीय परिस्थिती भी निर्यात के लिए सकारात्मक बनी हुई हैं।
जनवरी तक निर्यात के लिए लगभग 2.5 लाख टन चीनी पहले ही अनुबंधित हो चुकी है। बारामती एग्रो के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और इस्मा के अध्यक्ष रोहित पवार ने कहा की, निर्यात के लिए चीनी मिलों को एक्स मिल दर 18.50 रुपये प्रति किलोग्राम से 19 रूपये किलोग्राम और केंद्र सरकार से सहायता सहित मिलों को निर्यातित चीनी के लिए 31 रुपये किलोग्राम मिल रहे हैं। जबकि अधिकांश अनुबंध सफेद चीनी के लिए किए गए हैं, कच्ची चीनी की भी मांग बढ रही है। महाराष्ट्र के एक निजी चीनी मिल के कार्यकारी अधिकारी ने कहा, सफेद चीनी के लिए प्रस्तावित एफओबी मूल्य 310 प्रति टन से 330 डॉलर प्रति टन है, जबकि सफेद की पेशकश प्रति टन 290 डॉलर प्रति टन है।
चीनी मिलों को निर्यात के लिए प्रति किलोग्राम 11 रूपये तक सब्सिडी मिलेगी। गन्ना उत्पादन के लिए प्रति टन 1,388 रूपये और चीनी निर्यात के लिए 3,000 रूपये टन तक की परिवहन सब्सिडी मुहैय्या की है। भारत ने 2017-18 में 32.5 लाख टन चीनी का उत्पादन किया है, और इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) ने 2018-19 में 35.5 लाख टन उत्पादन का अनुमान लगाया है। 2018-19 में देश में 100 लाख टन चीनी स्टॉक है।
उत्तर प्रदेश, जो आमतौर पर बंदरगाहों से इसकी दूरी के कारण कच्ची चीनी का उत्पादन नहीं करता है, लेकिन अब सरकार की निर्यात सब्सिडी के चलते कच्ची चीनी का उत्पादन और निर्यात करने की संभावना है। यूपी स्थित त्रिवेणी इंजीनियरिंग और इंडस्ट्रीज के प्रमोटर तरुण सावनी ने कहा की, कुल निर्यात की मात्रा इस बात पर निर्भर करेगी कि वैश्विक और घरेलू बाजार किमत के मामले में कैसे प्रतिक्रिया देते हैं।
उत्तर प्रदेश की एक निजी चीनी मिल के कार्यकारी ने कहा कि, वह उम्मीद करते हैं कि राज्य 2018-19 में कम से कम 1 मिलियन टन चीनी निर्यात करेगी। भारत 5 लाख मेट्रीक टन चीनी के निर्यात के लिए प्रोत्साहन देगा। हालांकि, उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि, नकद प्रवाह की बाधाएं कुल निर्यात मात्रा में बाधा डाल सकती हैं, क्योंकि सकारी सब्सिडी मिलों तक पहुंचने में समय लगेगा।