रूडकी, उत्तराखंड: गन्ना फसल की बढती लागत और कम उत्पादन से किसानों को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।कम उत्पादन से मिलें भी अपने क्षमता के हिसाब से नही चल पा रही है। कई मिलें बार –बार ‘नो-केन’ हो रही है, जिससे उनको भी घाटा हो रहा है। चीनी मिल दो-तीन दिनों में गन्ना एकत्रित करती है, और फिर पेराई शुरू करती है।
गन्ने की कमी से मिल का पेराई बंद होने व फिर से चालू करने में ईंधन की खपत बढ़ रही है। इससे मिल को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। पर्याप्त गन्ना न मिलने से जिले की तीनों शुगर मिल इसी माह में पेराई सत्र का समापन कर सकती है। मिलों की गन्ना पेराई जहां मई माह तक चलती थी, वह इस बार मार्च तक सिमट गई है।
इकबालपुर शुगर मिल ने चालू पेराई सत्र का प्रारंभ पांच नवंबर को किया था। मिल को जनवरी से लगातार गन्ने की कमी बनी हुई है। इससे ‘नो केन’ की स्थिति बनी हुई है। मिल ने पिछले साल 58 लाख क्विंटल गन्ने की पेराई की थी, वहीं वर्तमान पेराई सत्र में गन्ने की कमी के चलते मिल 34. 40 लाख क्विंटल गन्ने की पेराई ही कर पाया है। यही हाल लिब्बरहेड़ी व लक्सर शुगर मिल का भी है।
‘अमर उजाला’ में प्रकाशित खबर के अनुसार, इकबालपुर शुगर मिल के मुख्य महाप्रबंधक सुरेश शर्मा ने बताया कि इस वर्ष अतिवृष्टि होने से गन्ने का उत्पादन बहुत कम हो गया है। गन्ना विकास परिषद के ज्येष्ठ गन्ना विकास निरीक्षक प्रदीप वर्मा, सहायक गन्ना आयुक्त शैलेंद्र सिंह ने बताया कि वर्षा ऋतु में ज्यादा बारिश होने से गन्ने की फसल का काफी रकबा नष्ट हो गया था, इससे उत्पादन बहुत कम मिल रहा है। इसका खामियाजा किसान और मिल दोनों को भुगतना पड़ रहा है।