कुरुक्षेत्र, 10 फरवरी: केन्द्र सरकार देश में जैविक खेती तो बढावा देकर शुद्द और पौष्टिक खाद्यान के उत्पादन पर जोर दे रही है। सरकार की योजना से प्रेरित होकर जहां कई राज्य जैविक तकनीकों को बढावा दे रहे है वहीं कुछ संगठन भी परंपरागत खेती को अपनाने पर जोर देते हुए आधुनिक तकनीक से युक्त जैविक खेती को भविष्य की खेती बता कर किसानों प्रेरित रहे है। ऐसा ही काम हो रहा है हरियाणा के कुरुक्षेत्र में जहां भारत की वैदिक संस्कृति से ओत प्रोत
जैविक खेती को बढावा देने के लिए परंपरागत कृषि पद्धतियों का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। कुरुक्षेत्र स्थित गुरुकुल सेवा संस्थान द्वारा यहां पर अन्य फसलों के साथ गन्ने की परंपरागत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। गुरुकुल में गन्ने की जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई दशकों से काम कर रही गुरुकुल प्रबंधन समिति के प्रधान कुलवंत सिंह सैनी ने कहा कि बीते छ साल से हमने यहां गन्ने की जैविक खेती में आधुनिक तरीकों से बढ़ावा देने का काम शुरु किया है। इस पद्धति से एक और लागत कम आ रही है वहीं किसानों का उत्पादन भी अधिक हो रहा है। इस पद्धति से तैयार गन्ने में शर्करा की मात्रा भी अपेक्षाकृत बढ़ रही है। कुलवंत सैनी ने कहा कि ये समय नेचुरल फ़ार्मिंग का है, जिसमें जीरो टिलेज कॉन्सेप्ट को अपनाने की जरूरत है। इन पद्धतियों से तैयार गन्ने में न तो तना सड़न रोग होता है और न ही पत्ता गलन होता है। किसानों को प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को अपनाने से गन्ने में किसी तरह की नहीं बिमारी होगी। इससे खाद और रसायनों का खर्चा भी बंद होगा, फसल की बढ़वार ज्यादा होगी। फसल जल्दी पकेगी, बाजार में दाम ज्यादा मिलेंगे। फसल का औसत उत्पादन भी बढ़ेगा।
आचार्य देवव्रत ने कहा कि सामान्य तरीके से गन्ने की औसत खेती में 400-500 क्विंटल प्रति एकड का उत्पादन होता है लेकिन जीरो बजट नेचुलर फ़ार्मिंग में तकरीबन 600 क्विंटल का प्रति एकड़ उत्पादन हो जाता है।
सैनी ने कहा कि जल संकट से निपटने के लिए आधुनिक तकनीकों से युक्त प्रणालियों को बढ़ावा देकर जल की बचत पर ध्यान दिया जा रहा है वहीं केंचुआ खाद देकर भूमि की सेहत भी बढ़ाईं जा रही है।
ग़ौरतलब है कि भारत सरकार ने देश में जैविक कृषि को बढावा देने के लिए न केवल अलग से बजटीय प्रावधान किए है बल्कि प्राकृतिक तरीकों से खेती करने वाले किसानों को प्रौत्साहन देकर उन्हे वित्तीय रूप से मदद देने का काम भी किया है।
उम्मीद की जाती है कि सरकार और संगठनों की इस तरह की पहल से न केवल किसान जैविक खेती के लिए प्रेरित होंगे बल्कि कम लागत में अधिक उत्पादन कर आर्थिक रूप ये सशक्त और मजबूत भी बनेंगे।
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