नई दिल्ली: पंजाब और हरियाणा में गन्ना उत्पादक कम उपज और उच्च इनपुट लागत से जूझ रहे हैं। जहां तक गन्ने की खेती का सवाल है, दोनों राज्यों के गन्ना उत्पादकों की रिपोर्ट एक गंभीर परिदृश्य को दर्शाती है। उत्पादक एक कड़वे अनुभव से जूझ रहे हैं, जिसका कारण पैदावार में गिरावट, राज्य सलाहित मूल्य (SAP) में अपेक्षा से कम वृद्धि, बड़े पैमाने पर बीमारियाँ और उर्वरकों, कीटनाशकों और श्रम की बढ़ती लागत है।
द ट्रिब्यून में प्रकाशित खबर के मुताबिक, गन्ना किसानों के लिए प्राथमिक चिंता कीटों के हमलों के कारण घटती पैदावार है, जिसके परिणामस्वरूप प्रति एकड़ 80 से 100 क्विंटल की भारी गिरावट आती है। दोनों राज्यों में पिछले दो वर्षों में गन्ने के रकबे और उत्पादन में लगातार गिरावट देखी गई है। किसानों के मुताबिक Co 0238 किस्म में अचानक कीट के हमले के कारण उत्पादकता में गिरावट आई है। किसानों और गन्ना विशेषज्ञों के अनुसार, गन्ने में रेड-रॉट, टॉप-बोरर और पोक्का बोइंग जैसी प्रमुख बीमारियां सामने आई हैं। लेकिन बड़े पैमाने पर उगाई जाने वाली Co 0238 किस्म, जिसे कभी ICAR ने ‘वंडर वैरायटी’ कहा था, किसानों को नुकसान पहुंचा रही है।
गन्ने की फसल का रकबा कम करने वाले जालंधर के किसान नेता हरसुलिंदर सिंह ने कहा, यह गन्ना किसानों के लिए खराब साल है क्योंकि बीमारियों के कारण उपज में प्रति एकड़ लगभग 100 क्विंटल की गिरावट आई है, जिससे किसानों को गन्ने की फसल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है। गन्ने की कटाई प्रवासी मजदूरों द्वारा मैन्युअल रूप से की जाती है। हरियाणा के यमुनानगर के गन्ना उत्पादक निर्मल सिंह ने कहा, खराब उपज के कारण उनका काम मुश्किल हो गया है और वे अब कटाई के लिए 55 से 60 रुपये प्रति क्विंटल वसूल रहे हैं, जबकि पिछले साल उन्होंने 42 से 45 रुपये प्रति क्विंटल वसूले थे।
यमुनानगर में सरस्वती शुगर मिल के उप महाप्रबंधक राजिंदर कौशिक कहते हैं की, खराब उपज के अलावा, गन्ने की फसल के रकबे में गिरावट के पीछे बढ़ती श्रम लागत एक प्रमुख कारण है क्योंकि कटाई की लागत साल दर साल बढ़ रही है।
पंजाब और हरियाणा दोनों में खेती के क्षेत्र में गिरावट देखी गई है।पंजाब में लगभग 88,000 हेक्टेयर और हरियाणा में 96,000 हेक्टेयर है, जो 2020-21 में क्रमशः 92,000 हेक्टेयर और 1.08 लाख हेक्टेयर से कम है।