महाराष्ट्र में मक्के से बदल रहा खेती का पैटर्न, SM स‍िस्टम ने बढ़ाई क‍िसानों की उम्मीद

एथेनॉल की वजह से मक्का बहुत तेजी से एक इनर्जी क्रॉप बनकर उभरा है. पानी की कम खपत और अच्छे दाम ने मक्के के प्रत‍ि क‍िसानों की द‍िलचस्पी को बढ़ा द‍िया है. भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (IIMR) की ओर से चलाए जा रहे ‘एथेनॉल उद्योगों के जलग्रहण क्षेत्र में मक्का उत्पादन में वृद्धि’ प्रोजेक्ट का असर अब द‍िखाई देने लगा है.

प्रेस रिलीज के मुताबिक, अब महाराष्ट्र के बहुत सारे क‍िसान प्याज के दाम में उतार-चढ़ाव से परेशान होकर अब कांदा की खेती छोड़कर मक्का की बुवाई कर रहे हैं या फ‍िर वो गन्ने के साथ मक्का की खेती कर रहे हैं. अंतर-फसल प्रणाली (Inter Cropping System) महाराष्ट्र के किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही है. ज‍िसमें दो या दो से अधिक फसलों को एक साथ उगाया जाता है. गन्ना-मक्का (SM-Sugarcane-Maize) अंतर-फसल प्रणाली क‍िसानों की इनकम बढ़ाने के लिए एक आशाजनक रणनीति के रूप में सामने आई है.

महाराष्ट्र में किसान मुख्य रूप से अतिरिक्त आय के लिए बड़े पैमाने पर गन्ना और मक्का एक साथ उगा रहे हैं. पहले किसान अक्सर प्याज के साथ गन्ने की अंतर-फसल करते थे. हालांकि, प्याज की कीमत में उतार-चढ़ाव और बढ़ती कीट और बीमारी की समस्याओं के कारण, कई लोग मक्का की ओर चले गए हैं. कुछ वर्षों में प्याज के कम भाव ने क‍िसानों को बहुत परेशान क‍िया है. इसल‍िए सुन‍िश्च‍ित इनकम के ल‍िए कई क‍िसानों ने मक्का की ओर रुख क‍िया है. इस बदलाव ने एक विश्वसनीय और लाभदायक विकल्प के रूप में एसएम प्रणाली की बढ़ती लोकप्रियता में योगदान दिया है.

 

क‍िस्मों का चयन बेहद अहम

फसल की किस्मों का चयन एसएम प्रणाली की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. आईसीएआर-भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के जलग्रहण क्षेत्र प्रोजेक्ट के तहत, डीएचएम 117, डीएचएम 121 , कोर्टवा, बेयर, बायोसीड आदि किस्मों को प्रदर्शन के लिए किसानों के।खेत पर प्रयोग किया गया. इस प्रोजेक्ट के तहत किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले हाईब्र‍िड मक्का के बीज प्रदान किए गए, जिन्हें कीटनाशकों के साथ सावधानीपूर्वक उपचारित किया गया था. यह बीज उपचार कमजोर अंकुर चरण के दौरान कीटों के खिलाफ सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है. स्वस्थ फसल की स्थापना सुनिश्चित करता है और शुरुआती दौर के कीटनाशक इस्तेमाल की जरूरत को कम करता है. उपचारित हाईब्रिड बीजों की आपूर्ति करके मक्का उत्पादन बढ़ाना इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य है. डॉ शंकर लाल।जाट के अनुसार मक्का+गन्ने के सहफसलीकरण में टॉपरमेजोन+ एंट्राजिन से ख़पतवार नियंत्रण एवं कॉलरेंट्रनलिप्रोल से कीट नियंत्रण किया जा सकता है, ये दोनों फसलों के लिए संस्तुत है। सहफसलीकरण मैं मक्का के लिए निर्धारित खाद की मात्रा अतिरिक्त देनी होती है। लगभग गन्ने में लगाए जाने वाले पानी से मक्का की आपूर्ति हो जाती है इससे जल एवं जमीन उत्पादकता अच्छी हो जाती है। खरीफ ऋतु मैं किए गए प्रयोगों मैं किसानों के खेत पर इस सहफसलीकरण में 24 क्विंटल प्रति एकड़ मक्का की पैदावार ली। महाराष्ट्र में अभी 30 एकड़ ऐसे प्रदर्शन लगे हुए है। उतरी बात में भी ये प्रदर्शन वसंतकालीन मक्का में लगने की योजना बन ली है।

वैज्ञानिक खेती पर किसानों को ट्रेन‍िंग

इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व कर रहे आईआईएमआर के न‍िदेशक डॉ. हनुमान सहाय जाट और वर‍िष्ठ वैज्ञान‍िक डॉ. एसएल जाट ने कहा क‍ि मक्का की फसल क‍िसानों के ल‍िए इस समय बेहतरीन व‍िकल्प है. इसकी मांग फूड, फीड और फ्यूल तीनों के ल‍िए बढ़ रही है. बहरहाल, इस प्रोजेक्ट के तहत, प्रत्येक मौसम में तीन तकनीकी ट्रेन‍िंग सत्र आयोजित किए गए, और किसानों के बीच मक्का की खेती को बढ़ावा देने के लिए फील्ड डे आयोजित किए गए. मक्का प्रजनकों, केवीके वैज्ञानिकों, जिला कृषि कर्मचारियों, मक्का विशेषज्ञों और बीज और कीटनाशक कंपनियों के प्रतिनिधियों सहित विशेषज्ञों ने इन कार्यक्रमों के दौरान किसानों का मार्गदर्शन किया. इस व्यापक प्रशिक्षण और प्रदर्शनों के कारण अब अधिक से अधिक किसान दूसरी फसलों को छोड़कर या तो मक्के की खेती को अपना रहे हैं या फ‍िर एसएम प्रणाली की ओर रुख कर रहे हैं. मक्के का दाम उसकी एमएसपी से अध‍िक बना हुआ है, इसल‍िए क‍िसानों को इसकी खेती में प्याज और दूसरी फसलों के मुकाबले दाम की सुन‍िश्च‍ितता ज्यादा द‍िख रही है.

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