नई दिल्ली : चीनी मंडी
2013 में सरकार द्वारा चीनी उद्योग में सुधारों के चलते लेवी प्रणाली को बंद करने का ऐलान किया । लेकिन अब ऐलान करने के पांच साल बाद खाद्य मंत्रालय ने 2011-12 के विपणन वर्ष (अक्टूबर-सितंबर) के लिए 1,38,273 टन और 2005-10 के लिए 36,084 टन अनुपलब्ध लेवी का दायित्व चीनी मिलों पर लगाया है , जिससे चीनी मिलों को बड़ा धक्का लगा है।
श्री रेणुका शुगर्स, बलरामपुर चीनी, बिड़ला शुगर जैसे नाम शामिल…
खाद्य मंत्रालय की तरफ से श्री रेणुका शुगर्स से 10,478 टन, बलरामपुर चीनी मिल्स 3,158 टन, बिड़ला शुगर 4,602 टन और राजश्री शुगर और केमिकल्स 3,472 टन आपूर्ति करने के लिए कहा गया है। कर्नाटक की बेलद बागेवाडी मिल 2005 और 2009 के बीच तथाकथित लेवी दायित्व के हिस्से के रूप में सरकार को 13,440 टन चीनी की आपूर्ति करने में असफल रही। लगभग एक दशक बाद, खाद्य मंत्रालय ने इस मिल को चीनी या तो बकाया भुगतान करने को कहा है ।
267 चीनी इकाइयां लेवी चीनी देने में रहीअसफल
खाद्य मंत्रालय ने इनको एक विकल्प दिया है, जिसमें ये सभी मिलें चीनी के तत्कालीन मौजूदा बाजार दर और उन वर्षों के लेवी मूल्यों के बीच के अंतर का भुगतान कर सकती हैं। श्री रेणुका शुगर्स, बलरामपुर चीनी मिल्स और बिड़ला शुगर्स समेत 267 चीनी इकाइयां 2005-12 के दौरान लेवी चीनी देने में असफल रहीं थी ।
तक़रीबन १५०-१६५ करोड़ की देनदारी?
चीनी उद्योग के सूत्रों के अनुसार, 2011-12 के लिए लंबित दायित्वों के तहत 125 करोड़ रुपये और 2005 और 2009 के लिए 30-35 करोड़ रुपये मिलों को चुकाने होंगे। लेवी कानून २०१३ में बंद होने के बाद खाद्य मंत्रालय ने उठाये इस कड़े कदम से चीनी मिलों को झटका लगा है ।
2013 में लेवी प्रणाली समाप्त
पूर्व लेवी प्रणाली के तहत, मिलों को सरकार के कल्याण कार्यक्रमों के लिए चीनी उत्पादन लागत के नीचे (2013 में 10%) चीनी आपूर्ति करने के लिए अनिवार्य किया गया था। लेवी कोटा की गैर-पूर्ति के बाद सरकार चीनी मिलों की बराबर मात्रा में चीनी जब्त भी करते थे । लेकिन सरकार ने रंगराजन पैनल की सिफारिशों के साथ चीनी क्षेत्र पर नियंत्रण को कम करते हुए , 2013 में लेवी प्रणाली को भी समाप्त कर दिया।
खाद्य मंत्रालय इतने वर्षों से इतने “लंबित दायित्वों” पर चुप क्यों ?
अब यह आश्चर्य जताया जा रहा है कि खाद्य मंत्रालय इतने वर्षों से इतने “लंबित दायित्वों” पर चुप क्यों रहा, अब चीनी मिलें पहलेही गन्ना किसानों का बकाया भुगतान और चीनी की फिसलती दरों से परेशान है। जुलाई के अंत तक 15,500 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड गन्ना बकाया चुकाने के लिए मिलें संघर्ष कर रही हैं । चीनी उद्योग को राहत देने के लिए सरकार ने बिक्री कोटा प्रणाली को फिर से पेश किया है। इसके चलते खाद्य मंत्रालयद्वारा उठाये गये कदम से चीनी मिलों के सामने अब और मुश्किल खड़ी हुई है ।
चीनी मिलों के सामने और एक मुसीबत
मिलों का कहना है कि, उनके लिए इतने सालों बाद रिकॉर्ड को ढूंढना और लंबित दायित्वों पर सरकारी आंकड़ों के साथ मेल खाना मुश्किल होगा। यदि लेवी दायित्व वास्तव में पूरा नहीं हुआ था, तो खाद्य विभाग को मांग बढ़ाने से किसने रोक दिया था। अगर जरूरत पड़ी तो खाद्य मंत्रालय के इस निर्णय के खिलाफ अदालत में चुनौती दी जा सकती है।