OMG…1 किलो चीनी के लिए लगता है 2,515 लीटर पानी

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मुंबई : चीनी मंडी
कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) के अनुसार, महाराष्ट्र में एक किलोग्राम चीनी का उत्पादन करने में 2,515 लीटर पानी लगता है। राज्य के औरंगाबाद जिले के सूखे की चपेट में आए ग्रामीण क्षेत्रों में, लोग घरेलू उपयोग के लिए 2,500 लीटर टैंकर पानी प्राप्त करने के लिए लगभग 1,000 रूपये का भुगतान करते हैं – जितना कि 1 किलो चीनी का उत्पादन करने के लिए आवश्यक होता है।

गन्ने के लिए 26.96 लाख करोड़ लीटर पानी का इस्तेमाल…
महाराष्ट्र में 195 चीनी मिलों ने 951.79 लाख टन गन्ने की पिराई कर इस साल 1,071.94 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन किया, जिसमें 26.96 ट्रिलियन लीटर पानी का उपयोग किया गया। राज्य के 36 जिलों में से छब्बीस पानी की कमी से जूझ रहे हैं, लेकिन इससे गन्ने की खेती और पेराई प्रभावित नहीं हुई है क्योंकि राज्य पिछले साल (2017-18) के चीनी उत्पादन से आगे निकल गया है।

महाराष्ट्र में गन्ने की खेती कुल फसली क्षेत्र के 4 प्रतिशत…
सीएसीपी ने अपनी पहले की रिपोर्टों में देखा है कि, महाराष्ट्र में, गन्ने की खेती, जो राज्य में कुल फसली क्षेत्र के 4 प्रतिशत से भी कम पर होती है, राज्य के लगभग 70 प्रतिशत सिंचाई पानी को बहा ले जाती है, जिससे बड़े पैमाने पर नुकसान होता है। इसके उपयोग में काफी असमानता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने गन्ने की पहचान एक प्रमुख जल-गहन क्षेत्र की फसल के रूप में की है, क्योंकि इसके लिए भारी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। दरअसल, मराठवाड़ा क्षेत्र में 47 चीनी मिलों ने 167.35 लाख मिलियन टन गन्ने की पेराई की, जहां के बांधों में सिर्फ 5 फीसदी पानी बचा है।

सोलापुर जिले में चीनी मिलों की सबसे अधिक संख्या…
चालू सीझन में सोलापुर जिले में चीनी मिलों की सबसे अधिक संख्या (44) थी, जो अपने लोगों की पेयजल जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रही है। सोलापुर की मिलों ने 203.50 लाख टन गन्ने की पेराई की। राज्य चीनी आयुक्त कार्यालय द्वारा प्रकाशित पेराई सत्र के आंकड़े दर्शाते हैं कि, चीनी उद्योग के दिग्गजों ने सूखे के दौरान एक सफल मौसम सुनिश्चित किया है, जिससे गन्ने की अधिकतम खेती को बढ़ावा मिलता है और पानी के उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके क्रशिंग किया जाता है।

195 मिलों में से 48 प्रतिशत मिलें निजी…
महाराष्ट्र को सहकारी चीनी मिलों के जन्मस्थान के रूप में देखा जाता है, अब निजी मिलों के राज्य के रूप में भी पहचाना जाता है। इस पेराई सत्र के दौरान शुरू हुई 195 मिलों में से 48 प्रतिशत मिलें निजी थी, जो ज्यादातर राजनेताओं की हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बार-बार आरोप लगाया है कि, चीनी फसल ही नही, बल्कि गन्ना पेराई के लिए पीने के पानी का इस्तमाल होता है।

पानी तेजी से बन रहा दुर्लभ संसाधन…
सीएसीपी के 2017-18 रिपोर्ट में कहा गया है की, गन्ना एक पानी से भरपूर फसल है, और पानी तेजी से दुर्लभ संसाधन बन रहा है। इस पृष्ठभूमि के खिलाफ, आयोग गन्ने में ड्रिप सिंचाई को बहुत अधिक प्राथमिकता पर लेने की सिफारिश कर रहा है। राज्य ने गन्ने की खेती के लिए ड्रिप सिंचाई अनिवार्य कर दी है, लेकिन किसानों और चीनी मिलों ने राज्य सरकार की पहल का जवाब नहीं दिया है। राज्य में गन्ने को ज्यादातर बांधों और नहरों के नेटवर्क के माध्यम से सिंचित किया जाता है।

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