सरकार को चीनी की एमएसपी 3600 रूपये तक बढ़ाना चाहिए : संजय अवस्थी

 

 

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चीनी अधिशेष के कारण देश के लिए कड़वी मुसीबत बनी हुई है। भारत में अतिरिक्त चीनी उत्पादन ने कीमतों को लगातार गिरा दिया है और मिलों के नकदी प्रवाह को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया है। गन्‍ना भुगतान करने के लिए मिलरों को संघर्ष करना पड रहा है, हालांकि सरकार द्वारा विभिन्न राहत पैकेजों के माध्यम से दी गई सहायता ने मिलरों को कुछ हद तक राहत दी है, और उससे बकाया राशि को कम करने में भी मदद की है।

ChiniMandi.com के साथ बातचीत में द शुगर टेक्नोलॉजिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष संजय अवस्थी  ने भारतीय चीनी उद्योग के वर्तमान परिदृश्य और संकट से उबरने के तरीकों पर अपने विचार साझा किए।

सवाल : वर्तमान चीनी परिदृश्य को देखते हुए सरकार द्वारा लिए गए उपायों पर आपके क्या विचार हैं?

जवाब-. जहां तक पिछले और शुरू सीजन के चीनी उत्पादन का विचार किया जाए, तो अधिशेष चीनी की समस्या के कारण हमारे ऊपर काफी दबाव बना है। इस साल भारतीय चीनी उत्पादन ने ब्राजील को भी पीछे छोड़ दिया हैै। हम 26 लाख मिट्रीक टन की खपत के मुकाबले 32.5-33 लाख मिट्रीक टन के रिकॉर्ड उत्पादन की ओर बढ़ रहे हैं। इसलिए, यदि पिछले साल का 10.5 लाख मिट्रीक टन का शुरुआती स्टॉक और इस वर्ष के अधिशेष स्टॉक को मिला देते है, तो हम अगले 6-7 महीनों की खपत को पूरा कर सकता है।

चीनी उद्योग की विभिन्न समस्याओं को दूर करने के लिए केंद्र सरकार की समयबद्ध पहलों के लिए धन्यवाद करना चाहीए। मुझे लगता है कि, चीनी उद्योग को भी अब समस्या से उपर उठने के लिए खुद के काम करने के तरीके में बदलाव करने की जरूरत हैै, क्योंकि कुछ मिलर्स न्यूनतम विक्री मूल्य से कम पर चीनी बेचकर खेल बिगाड़ रहे हैैं। जिससे पुरा चीनी उद्योग आहत हो रहा हैै।

जब मैं सरकार के उपायों पर जोर देता हूं, तो जो मुझे सबसे अच्छा उपाय लगा, वो  है सरकार की 2018 की जैव-ईंधन नीति। जिन चीनी मिलों में इथेनॉल उत्पादन सुविधाओं के साथ डिस्टिलरी हैं, उन्हें इथेनॉल के लिए आंशिक रूप से रस को मोड़ना चाहिए, क्योंकि सीधे गन्‍ने के रस से बने इथेनॉल की कीमत 59.70  रूपये लीटर है।

सवाल : जैव ईंधन नीति कैसे बाधाओं को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी?

जवाब : केंद्र सरकार ने अगले दशक तक पेट्रोल के साथ 20 प्रतिशत इथेनॉल सम्मिश्रण प्राप्त करने का लक्ष्य तय किया है। हम पेट्रोल के साथ 10 प्रतिशत इथेनॉल सम्मिश्रण का पहला पाडाव अगले साल हासिल कर सकते है, क्योंकि हम इस साल पहले ही 8% सम्मिश्रण कर चुके हैं।

अब चीनी उद्योग के लिए यह समय है कि, वह नियमित रूप से बी-भारी शीरे और गन्ने के रस से इथेनॉल के उत्पादन के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे और सुविधाएँ तैयार करे। उद्योग को 2 जी या 3 जी प्रौद्योगिकियों के माध्यम से इथेनॉल के उत्पादन के बारे में भी सोचना चाहिए।

सवाल : आपके अनुसार, चीनी उद्योग की बेहतरी के लिए सरकार को और क्या कदम उठाने चाहिए?

जवाब : मैं सोचता हूं कि, अगर सरकार एमएसपी 3600 रूपये करती है, तो चीनी उद्योग की बाधाओं का अधिकतम हिस्सा कम हो जाएगा। पहले कुछ सालों तक चीनी की खुदरा बाजार में किंमत 42-44 रूपये थी, इसलिए अभी भी अगर सरकार चीनी उद्योग को आर्थिक समस्या से बाहर निकालने के लिए एमएसपी में 5 रूपये की बढ़ोतरी करती है, तो किसी भी उपभोक्ता को नुकसान नहीं होगा।

सवाल : वैश्विक बाजार में भारत एक प्रमुख खिलाड़ी कैसे बन सकता है?

जवाब : इसके लिए, चीनी उद्योग को अपनी विनिर्माण प्रक्रिया को डीएस (डबल सल्फेटीशन) से बदलना होगा, जो वैश्विक बाजारों में और भारत में भी थोक उपभोक्ताओं द्वारा कच्ची / परिष्कृत चीनी के लिए स्वीकार्य नहीं है। भारतीय चीनी उद्योग गंभीरता से वैश्विक चीनी बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी बनना चाहता है, तो उद्योग को डिमेरर चीनी, चीनी के फार्मास्युटिकल ग्रेड, तरल चीनी आदि का उत्पादन भी करना चाहिए।

उपरोक्त के अलावा, एक और क्षेत्र है जिसे उद्योग पर ध्यान देने की आवश्यकता है, और वो है गन्ने की फसलों में सुधार और संतुलन। उद्योग को नई गन्ने की किस्मों की तलाश शुरू करनी चाहिए क्योंकि वर्तमान किस्म उज 0238 लगभग 10 वर्षों तक जीवित रही है और हम यह भी अच्छी तरह से परिचित हैं कि सबसे लंबी  लाइफ लगभग 12-15 साल है। यह उच्च समय है कि मिलों, अनुसंधान संस्थानों, प्रजनकों और गन्ना विशेषज्ञों को एक साथ आना चाहिए और एक नई किस्म के विकास के लिए काम करना चाहिए। जो एक शानदार काम है क्योंकि इसमें लगभग 7-8 साल लगते हैं। इसे एक अलार्म के रूप में लिया जाना चाहिए और एक भी गन्ने की विविधता पर निर्भर नहीं होना चाहिए, जिसने उपोष्णकटिबंधीय भारत में 65-70% फसल क्षेत्र को कवर किया है।

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SOURCEChiniMandi

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