मुंबई: चीनी मंडी
केंद्र सरकार की हर मुमकिन कोशिशों के बावजूद महाराष्ट्र में चीनी मिलों की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार होते नही दिख रहा है। राज्य में लगातार सूखे की हालत इसकी सबसे बड़ी वजह बताई जा रही है। आर्थिक हालात खराब होने के कारण राज्य की कई मिलें किसानों को गन्ने का भुगतान भी नहीं कर पा रही हैं। ऐसे में महाराष्ट्र सरकार ने 15 चीनी मिलों को वित्तीय मदद देने का फैसला किया है। कई मिलें अभी तक एफआरपी बकाया भुगतान करने में नाकाम रही है और चीनी आयुक्त द्वारा उन मिलों पर सख्त कार्रवाई की जा रही है।
वित्तीय संकट से जूझ रही चीनी मिलों की मदद के संदर्भ में अध्ययन के लिए प्रधान सचिव, वित्तीय सुधार की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। समिति ने वित्तीय संकट में फंसी 15 मिलों की मदद करने का सुझाव दिया था। मंत्रिमंडल ने इसे स्वीकार कर लिया। राज्य के सहकारिता मंत्री सुभाष देशमुख ने कहा कि, राज्य में पिछले पांच से छह साल से सूखे के कारण चीनी मिलों की वित्तीय स्थिति बिगड़ गई है। ऐसे में सरकार ने कर्मचारियों के हित और मिलों को चालू रखने के साथ-साथ किसानों के भुगतान के लिए वित्तीय मदद देने का निर्णय किया है। इस सीजन में 193 चीनी मिलों ने क्रशिंग सीझन में हिस्सा लिया।
इन मिलों ने एक मार्च के अंत तक 837.72 लाख टन गन्ने की पेराई की और 9.55 लाख टन चीनी का उत्पादन किया। किसानों को 15 फरवरी तक के क्रशिंग के लिए 12,949 करोड़ 28 लाख रुपये की राशि दी गई है। इसमें से जनवरी और फरवरी में आठ हजार करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। हालाँकि, अभी भी ४८६४ करोड़ ९७ लाख रूपये बकाया भुगतान बाकि हैं। गन्ना नियंत्रण अधिनियम के अनुसार, किसानों को 14 दिनों के भीतर एफआरपी राशि का भुगतान करना अनिवार्य है, अन्यथा मिल को यह राशि 15% ब्याज के साथ चुकानी पड़ती है। राज्य में लगभग 65 मिलों ने 80 प्रतिशत से अधिक एफआरपी राशी का भुगतान किया है। 73 मिलों ने 60 प्रतिशत एफआरपी की रकम किसानों के खाते में जमा की है।